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________________ (२५८) दो भेद हैं । अक्षर, अनक्षर आदि स्व पर्याय हैं । क्षयोपशम की विचित्रता तथा विषयों के अनन्त रूप से श्रुतानुसारी ज्ञानों की भी अनन्तता के कारण ये पर्याय अनन्त होते हैं अथवा इस श्रुत ज्ञान के निर्विभाग परिच्छेद है इसलिए इसके पर्याय भी अनन्त हैं। (१०२२-१०२३) अविभाग परिच्छे दैरनन्ता वा भवन्ति ते । .. अनन्ता पर पर्याया अप्यस्मिस्ते तु पूर्ववत् ॥१०२४॥ ... श्रुत ज्ञान के पर पर्याय भी अनन्त होते हैं । जैसे मति ज्ञान के पर पर्याय हैं, वैसे ही इसके समझ लेना, जो पूर्व में कह गये हैं। (१०२४) अथवा स्यात् श्रुत ज्ञानं श्रुत ग्रन्थानुसारतः । श्रुत ग्रन्थश्चाक्षरात्मा तान्यकारादिकानि च ॥१०२५॥ .. अथवा श्रुत ज्ञान श्रुत ग्रंथ के अनुसार होते हैं, वह श्रुत ग्रन्थ अक्षर रूप है, वह अक्षर अकारादिक रूप हैं। (१०२५) . तच्चै कै कमुदात्तानुदात्त स्वरित भेदतः ।.. अल्पानल्प प्रयत्नानुनासिकान्यविशेषतः ॥१०२६॥ संयुक्तासंयुक्त योगद्वयादि संयोग भेदतः । आनन्त्याच्यामिधेयानां भिद्यमानमनन्तधा ॥१०२७॥ युग्मं। इन अकार आदि अक्षरों के उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, अल्प प्रयत्न, अनल्प प्रयत्न, अनुनासिक अननुनासिक, संयोगी, असंयोगी, द्विक् संयोगी इत्यादि अनेक भेद हैं, इसलिए उसके अनन्त अभिधेय (नाम) हैं इसलिए इसके भेद भी अनन्त हैं। (१०२६-१०२७) केवलोलभतेऽकारः शेष वर्णयुतश्च यान् । ते सर्वेऽस्य स्व पर्यायास्तदन्ये पर पर्यवाः ॥१०२८॥ अन्य अक्षरों के साथ जोड़ने से केवल अकार का जो पर्याय होता है वह इसका स्व पर्याय कहलाता है, उसके बिना पर पर्याय कहलाता है । (१०२८) एवं च ........ अनन्त स्वान्य पर्यायमेकैकमक्षरं श्रुते । ___ पर्यायास्तेऽखिल द्रव्य पर्यायराशिसम्मिताः ॥१०२६॥ इस तरह से श्रुत ज्ञान में एक-एक अक्षर के अनन्त स्व पर्याय और पर पर्याय होते हैं । और इन सब पर्यायों का कुल योग सर्व द्रव्य पर्याय के जितना होता है। (१०२६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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