SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४६) दिखते हैं । परन्तु इस तरह विविध रूप होने से इसका एक निश्चय रूप नहीं कर सकते हैं । उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो ज्ञात होता है कि मनुष्य और घोड़े की इन्द्रियों का आकार अलग-अलग है । (४६६-४७०) अभ्यन्तरा तु निवृत्तिः सयाना सर्वजातिषु । . उक्तं संस्थान नैयत्यमेनामेवाधिकृत्य च ॥४७१॥ अन्तरंग आकृति तो सर्व जातियों की समान ही होती है । यह अन्तरंग आकृति से ही इनके संस्थान निश्चयपूर्वक कह सकते हैं । वह आगे कहते हैं । (४७१) तथाहि- श्रोत्रं कदम्ब पुष्पाभ्यां सैक गोलकात्यम कम् । मसूरधान्यतुल्या स्याच्चक्षुषोऽन्तर्गताकृतिः ॥४७२॥ . अति मुक्तक पुष्पाभं घ्राणं च काहलाकृति । जिह्वा क्षुर प्राकारा स्यात् स्पर्शनं विविधाकृति ॥४७३॥ कर्णेन्द्रिय कदम्ब के पुष्प समान मास का एक गोलाकार रूप है । चक्षुरिन्द्रिय मसूर नामक अनाज समान है । नासिका अति मुक्तक पुष्प समान और काहल नामक बाजे के आकार वाली होती है । जीभ क्षुर-अस्त्र के आकार की है और स्पर्शेन्द्रिय अनेक आकार वाली होती है । (४७२-४७३) स्पर्शनेन्द्रिय निर्वृत्तौ बाह्याभ्यन्तरयो भित् । तथैव प्रतिपतव्यमुक्तत्वात्पूर्व सूरिभिः ॥४७४॥ स्पर्शेन्द्रिय के बाह्य और अभ्यन्तर आकार में कोई अन्तर नहीं होता है । पूर्वाचार्यों ने भी इसी तरह कहा है। इसलिए ऐसा ही अंगीकार करना चाहिए । (४७४) बाह्य निवृत्तीन्द्रियस्य खड्गेनोपमितस्य या । धारोपमान्त निवृत्तिरत्यच्छ पुद्गलात्मिका ॥४७५॥ ___इन्द्रियों की बाह्य आकृति को खड्ग (तलवार) की उपमा दी है और अन्दर की आकृति को खड्ग की धार की उपमा दी है। तथा यह अभ्यन्तर आकृति अत्यन्त निर्मल पुद्गल रूप है । (४७५) . तस्याः शक्ति विशेषो यः स्वीय स्वीयार्थ बोधकः । ___ उक्तं तरेवोप करणेन्द्रियं तीर्थ पार्थिवैः ॥४७६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy