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मनुष्य के सिवाय कई अन्य जीवों को मनुष्य जन्म में तीन आहारक समुद्घात होते हैं और होने वाले चार ही होते हैं अधिक नहीं होते। मनुष्य को मनुष्य जन्म में अनुभव किये आहारक समुद्घात चार ही संभव होते हैं। मनुष्य जीवन में होने वाले भी उतने ही होते हैं क्योंकि मनुष्य के बिना दूसरों को चार आहारक समुद्घात व्यतीत नहीं होते हैं। कारण यह है कि यह चौथा आहारक समुद्घात अधिकतः उसी जन्म में सिद्ध होता है। (२७० से २७२)
तथोक्त प्रज्ञापनावृत्तौ-'इह यश्चतुर्थवेलमाहरकं करोतिसनियमात्तद्भव एव मुक्ति मासा दयति न गत्यन्तर मिति।'
प्रज्ञाप्त सूत्र में भी कहा है कि- 'यहां जो चौथी बार आहारक समुद्घात करता है वह उसी जन्म में मोक्ष जाता है। अन्य गति में इसको जाने का नहीं होता। केवल मोक्ष पद प्राप्ति होती है।'
सप्तमस्तु न कस्यापि स्याद् तीतो नर बिना । भाव्यप्येकोऽन्य जन्तूनां केषांचिनृत्व एवं स ॥२७३॥
सातवां समुद्घात मनुष्य जन्म बिना अतीत काल में नहीं होता । जो किसी प्राणी को समुद्घात होने का होता है वह मनुष्य जन्म में ही होता है और वह भी एक बार ही होता है । (२७३). . . समुद्घातोत्तीर्णजिनं प्रतीत्यैको निषेवितः । . .. मनुष्यस्य मनुष्यत्वेऽनागतोऽप्येक एव सः ॥२७४॥ .. समुद्घात से पार उतरने वाले केवली ने तो एक सातवां ही सेवन किया होता है, और मनुष्य जीवन में मनुष्य को अनागत समुद्घात भी एक ही बार होता है। (२७४) . . .
असद्वेद्यादि त्रितश्चाद्यो मोहनीयाश्रितः परः । - अन्तर्मुहूर्त शेषायुः संश्रितः स्यातृतीयकः ॥२७५॥
तर्यु पंचमषष्टाश्च नाम कर्म समाश्रिताः । .. नाम गोत्र वेद्यकर्म संश्रितः सप्तमो भवेत् ॥२७६॥
प्रथम समुद्घात आशाता वेदनीय कर्म के आश्रय वाला होता है, दूसरा समुद्घात मोहनीय कर्म के आश्रय वाला होता है और तीसरा अन्तरर्मुहूर्त शेष आयु कर्म के आश्रय वाला होता है । चौथा, पांचवां और छठा ये तीनों समुद्घात नाम कर्म