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________________ (११०) तथा इस ग्रन्थ की वृत्ति में इस प्रकार कहा है- छः मास आयुष्य शेष रह जाती है उस समय जिनको केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ है वे निश्चय ही समुद्घात करते हैं। अन्य को समुद्घात करें अथवा न भी करें। इस प्रकार से सातवें केवली समुद्घात' के विषय में कहा है। आद्याः पंच समुद्घाताः सर्वेषामपि देहिनाम् । अनुभूता अनन्ताः स्युर्यथास्वं सर्व जातिषु ॥२६६॥. प्रथम पांच अर्थात् १- वेदना से, २- कषाय से, ३- मरणान्तिक, ४- वैक्रिय और ५- आहारक के द्वारा समुद्घात सर्व प्राणियों को सर्व जातियों में अनन्तबार अनुभव किए गये हैं। (२६६) भावि नस्तु न सन्त्येव केषांचिल्लघु कर्मणाम् । । केषां चित्त्वंगि नामे कद्धयादयः स्युनेकशः ॥२६७॥ यावद् गण्या अगण्या वा स्युः केषां चिदनन्तकाः। यथास्वं सर्वजातित्वे विज्ञेया बहुकर्मणाम् ॥२६८॥ कई लघु कर्मी जीवों का यह समुद्घात नहीं होता है, जबकि कईयों का यह एक-दो बार, इस तरह अनेक बार होता है और कई बहकर्मी जीवों का संख्यात समुद्घात होता है, कई बहुकर्मी को असंख्य होता है और कईयों का तो अनन्त बार होता है। (२६७-२६८) नवरम्- सूक्ष्मानादि निगोदैस्तु निगोरदे त्रय एव ते। अनुभूता अनन्ताः स्यु विनस्ते तु सर्ववत् ॥२६६॥ विशेष में इतना है कि- सूक्ष्म अनादिक निगोद के जीवों ने निगोद के अन्तर भूतकाल में दो, तीन ही समुद्घात अनन्त बार अनुभव किये होते हैं । भविष्य काल में तो सर्व के समान होगा। (२६६) .आहारका नरान्येषां केषांचिन्न भवे त्रयः । . अतीताः स्यु विनस्तु ते चत्वारो न चाधिकाः ॥२७०॥ सम्भवेयुश्चत्वारोऽभूता नृभवे नृणाम् । भविष्यन्तोऽपि विज्ञेया स्तावन्तो नृभवे नृणाम् ॥२७१॥ चत्वारोऽपि व्यतीतास्तु नान्येषां नृन् यतः । आहारकं तुर्य वार कृत्वा सिध्यति तद् भवे ॥२७२॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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