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________________ (८०) "मतान्तरेण उत्कर्षतः षण्मासावशेषेजघन्यतश्चअन्तर्मुहूर्त्तशेषेनारकाः पर भवायुर्बजन्ति इति भगवती सूत्रे (शतक १४ उद्देश ? )॥" . . अन्य मत ऐसा है कि उत्कृष्ट छः मास आयुष्य शेष रहे तब और जघन्य अंतर्मुहूर्त शेष रहे तब नारकी जीव अगले जन्म का आयुष्य बंधन करता है। यह भगवती सूत्र के चौदहवे सूत्र के प्रथम उद्देश में कहा है। निजायुषस्तृतीयेशे शेषेऽनुपक मायुषः । ..... नियमादन्य जन्मायुर्निर्बघ्नन्ति परे पुनः ॥६२॥' और शेष निरुपक्रमी आयुष्य वाले अपनी आयुष्य का तीसरा विभाग शेष रहे तब निश्चय से अगले जन्म का आयुष्य बंधन करते हैं । (६२) .. यावत्यायुष्यवशिष्टे पर जन्मायुरय॑ते । .. कालस्तावानबाधाख्यस्ततः परमुदेति तत् ॥६३॥ जितना आयुष्य शेष रहते अगले जन्म का आयुष्य बंधन करने में आता है उतने काल को अबाध काल' कहते हैं और उसके बाद वह उदय में आता है। (६३) - इति भवस्थिति ॥७॥ इस तरह सातवें द्वार में भव स्थिति का स्वरूप कहा।। कायास्थितिस्तु पृथिवी कायिकादिशरीरिणाम् । तत्रैव कायेऽवस्थानं विपद्योत्पद्य चासकृत् ॥६४॥ आठवें काया द्वार में- पृथ्वी कायं आदि जीव मृत्यु प्राप्त करके तथा पुनः वहीं उत्पन्न होकर एक साथ में ही उसी काया में रहते हैं वह काया स्थिति कहलाती है। इति काय स्थिति स्वरूपम् ॥८॥ यह आठवां द्वार काय स्थिति का स्वरूप कहा है। औदारिकं वैक्रियं च देहमाहारकं तथा । . तैजसं कार्मणं चेति देहाः पंचेदिता जिनैः ॥६५॥ अब नौवां द्वार देह या शरीर के विषय में कहते हैं- श्री जिनेश्वर प्रभु ने पांच प्रकार के शरीर कहे हैं - १- औदारिक, २- वैक्रिय, ३- आहारक, ४- तैजस और ५- कार्मण । (६५) उदारैः पुद्गलैजातं जिनदेहाद्यपेक्षया ।. उदारं सर्वतस्तुंगमिति चौदारिकं भवेत् ॥६६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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