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________________ (७६) अब सातवें द्वार में भव स्थिति के विषय में कहते हैं - भव स्थिति अर्थात् उस भव-जन्म का आयुष्य । वह दो प्रकार का है- १- सोपक्रम और २निरूपक्रम। (६६) कालेन बहु ना वेद्यमप्यायुर्यत्तु भुज्यते । अल्पेनाध्यवसानाद्यै रागमोक्तै रूपक मैः ॥७०॥ आयुः सोपक्रमं तत्स्यादन्यद्वा कर्म तादृशम् । । यद्बध समये बद्धं श्लथं शक्यापवर्तनम् ॥७१ युग्मम् बहुत काल से वेदन होने पर भी शस्त्रोक्त अध्यवसायादि उपक्रम से अल्पकाल में भोगा जाय ऐसा जो आयुष्य है वह सोपक्रम आयुष्य है अथवा शिथिल और निवर्तन हो सके, ऐसा बंधन किया हो वह कर्म है, वह भी सोपनम कहलाता है। (७०-७१) दत्तागिरेकतो रज्जुर्यथा दीर्घाकृता क्रमात् । दह्यते संपिण्डिता तु सा झटित्येकहेलया ॥७२॥ जैसे लम्बी की हुई रस्सी एक किनारे से जलाने पर अनुक्रम से जलती है परन्तु वही रस्सी गोल कर अग्नि में डालने पर एक साथ ही जल जाती है। (७२) यत्पुनर्बन्ध समये बद्धं गाढ निकाचनात् । कमवेद्यफलं तद्धि न शक्यमपवर्तितुम् ॥७३॥ इसी तरह जो कर्म गाढ़े निकाचित बंधन किया हो उसका फल अनुक्रम से भोगना पड़ता है और इसका परिवर्तन नहीं हो सकता है। (७३) क्षीयतेऽध्यवसानाद्यैयैः स्वोत्यैः स्वस्व जीवितम् । परैश्च विषशस्त्राद्यैस्तु स्युः सर्वेऽप्युपक्रमाः ॥४॥ उपक्रम अर्थात् स्वयं अपने से उत्पन्न हुए अध्यवसाय आदि तथा अन्यों द्वारा प्रेरित विष, शस्त्र आदि जिस आयुष्य का नाश करने वाले हैं वह सारा उपक्रम कहलाता है । (७४) .यदाहु-अज्झवसाण निमित्ते आहारे वेयणापराधाए। फासे आणापाणू सत्तविहं जिज्झए आउं ॥७५॥ कहा है कि- अध्यवसाय, निमित्त, आहार, वेदना, पराघात, स्पर्श और श्वासोच्छास - इन सात प्रकार से आयुष्य नष्ट होता है। (७५) त्रिधा तत्राध्यवसानं रागस्नेह भयोद्भवम् । व्यापादयन्ति रागाद्या अप्यत्यन्त विकल्पिताः ॥७६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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