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________________ (७७) अध्यवसाय तीन प्रकार के कहे हैं, १- राग द्वारा, २- स्नेह द्वारा और ३- भय द्वारा । अत्यन्त संकल्प - विकल्प युक्त राग आदि से भी मृत्यु का कारण बनता है। (७६)॥ यथा प्रपालिकाया युवानमनुरागतः । पश्यन्त्याः क्षीणमायुर्यत्कामस्यान्त्या दशा मृतिः ॥७७॥ उदाहरण के तौर पर- एक युवा पुरुष के विषय में राग के कारण आसक्त बनी एक स्त्री की मृत्यु होती है क्योंकि काम की दस अवस्था कही हैं उन में अन्तिम अवस्था मृत्यु है। (७७) यतः- - चिंते दटुमिच्छई दीहं नीससइ तह जरे दाहे। भत्त अरोयणमुच्छा उम्माय न याणई भरणं ॥७८॥ काम की १- चिन्तन कस्ना, २- स्नेह के पात्र को देखने की इच्छा करना, ३- दीर्घ निःश्वास छोड़ना, ४- ज्वर होना,५- दाह होना, ६- भोजन पर अरुचि होनी, ७- मूर्छा आनी, ८- उन्माद होना, ६- विचार शक्ति खतम होना, १०- अन्तिम मृत्यु - ये दस अवस्थायें हैं । (७८) कस्याश्चित् सार्थवाह्याश्च विदेशादागते प्रिये । मित्रैः स्नेह परीक्षार्थ विपन्ने कथितेऽथ सा ॥६॥ सार्थवाही विपन्नैव सार्थवाहोऽपितां मृताम् । श्रुत्वा तत्संगमायेव तूर्ण स्नेहाद् व्यपद्यत ॥८०॥ युग्मं। कोई सार्थवाह परदेश से अपने घर आ रहा था। उस समय उसके मित्रों ने उसके घर जाकर पहले उसकी स्त्री के प्रेम की परीक्षा करने के लिए, उसके पास पहुंचकर समाचार दिया कि 'तेरे स्वामी की मृत्यु हो गयी है।' इतना सुनते ही वह स्त्री पति प्रेम के कारण मर गई । सार्थवाह ने भी घर आकर देखा तो स्नेह के कारण मानो स्वयं उसको मिलने जाता हो, इस तरह प्राण का त्याग कर दिया। इस तरह राग और स्नेह के कारण दोनों की मृत्यु हो गई । (७६-८०) भयाद्यथा वासुदेव दर्शनात् सोमिनो द्विजः । हत्वा गजसुकुमारं नगरीमाविशन् मृतः ॥८१॥ गजसुकुमार का घात कर नगर में आते सोमिल ब्राह्मण की श्री कृष्ण को देखकर भय के कारण से मृत्यु हुई। (८१) इस तरह राग, स्नेह व भय से मृत्यु प्राप्त करने वाले अनुक्रम से तीन दृष्टान्त कहे हैं।
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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