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और “दिवामैथुन रित" कहा जाता है। लाटी संहिता ( पृ० १९) में इन दोनों मतों को समन्वित कर दिया गया है।
रात्रिभोजन में हानियों का उल्लेख करते हुए जैनाचार्यों ने स्वास्थ्य का आधार लेकर कहा है कि उससे नये रोगों की भी संभावना हो सकती हैं भोजन में मक्खी खाने में आ जाये तो उससे वमन होता है, यदि बाल आ जाये तो स्वरभंग हो जाता है, यदि जू (जुआ) खाने में आ जाये तो जलोदर आदि रोग उत्पन्न हो जाये और छिपकली खाने में आ जाये तो कोढ़ हो जाता है ( धर्मसंग्रह, ३.२३) । जो सूर्यास्त हो जाने पर भोजन - करते हैं वे सूर्य-द्रोही हैं तथा उन्हें मुर्दों के मृतक शरीर के ऊपर बैठकर भोजन करने वाला कहना चाहिए। रात्रि भोजन त्यागी व्यक्ति आधे जनम को उपवास के रूप में व्यतीत करता. है (धर्मसंग्रह ३.२५-३३) । वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन स्वास्थ्यप्रद नहीं है। ..
संकल्पी हिंसा का त्यागी व्यक्ति को पशु-पक्षी, मनुष्य आदि का बंध, वधन, छेदन, अतिभारारोपण, भोजन न देना आदि जैसे काम नहीं करना चाहिए। नैष्ठिक श्रावक के लिए तो गाय आदि पालन द्वारा अपनी आजीविका चलाना भी अनुचित हैं। अहिंसाणुव्रती को प्रमाद छोड़कर दयाभाव करना चाहिए और विकथायें स्त्री-देश-राज-भोजन कथायें छोड़ देना चाहिए (सागर, ३.३.२२)।
अहिंसाणुव्रत के अतिचारों में मारना, बांधना, छेदना, अधिक बोझ लादना और अन्नपान का रोक देना सम्मिलित हैं। इसके अन्तर्गत यह है — गाय, भैंस आदि मारना, पीटना, सांकल से बांधना कसकर उनकी नाक आदि अधिक छेदना, अपराधी का नाक-कान काटना, पशुओं पर अधिक बोझ लादना, उन्हें समय भोजन-पान न देना ये अहिंसाणुव्रत के अतिचार हैं।
औद्योगिकीकरण के फल स्वरूप आज छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी में लगा दिया जाता है जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। गरीबी के कारण कहीं वे घर गृहस्थी के कामों में लगा दिये जाते हैं, कहीं बंधुआ मजदूर के रूप में खेतों में काम करते हैं तो कहीं बीड़ी आदि उद्योगों में फंसे रहते हैं। भारत सरकार ने इस संदर्भ में अनेक कानून बनाये, अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संस्थान ने भी इस पर गहराई से विचार किया, पर फिर भी उनकी हालत सुधर नहीं पाई। जैनाचार्यों ने अहिंसाणुव्रत के अन्तर्गंत इस पर विचार किया है और कहा है कि छोटे बच्चों को काम पर नहीं लगाना चाहिए यदि लगायें भी तो उनसे उनकी शक्ति से अधिक काम नहीं लेना चाहिए।
२. सत्याणुव्रत
शेष अणुव्रत अहिंसाणुव्रत के रक्षक के रूप में निर्धारित किये गये हैं। सत्याणुव्रती वह है जो राग द्वेषादि कारणों से झूठ न स्वयं बोलता हो और न दूसरों से बुलवाता