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________________ (५८) दुर्बलता, मानसिक तनाव आदि जैसे तत्त्वों से व्यक्ति बुरी तरह घिर जाता है। जैनाचार्यों ने व्यसनों के इन परिणामों से व्यक्ति को खब आगाह किया है और तरह-तरह के दृष्टान्त देकर उसे सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न किया है। (वसु. श्राव. १२५१३४) उनका कहना है कि मादक द्रव्य स्थायी शान्ति-प्राप्ति का साधन नहीं हो सकता। क्षणभर के लिए अपने को भुलावे में भले ही रखा जा सकता है। व्यसन-लिप्तता के कारण नरकादिक गतियों के दुःख को भी भोगना पड़ता है (वसु० श्रा० १३४-२०४)। . सर्वाधिक मुख्य बात है यह कि मानसिक तनाव के कारणभूत लोभ, ईर्ष्या क्रोध, ' अहंकार आदि विक्षिप्तकारी विकार भावों से दूर रहने का सही प्रयत्न होना चाहिए। निष्कामता, अतृप्त वासना पर संयम, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे आदतों से मुक्ति पाई जा सकती है। अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करते हुए यथार्थ तत्त्व की परम सत्यता पर बार-बार चिन्तन करने से मनोबल बढ़ता है, विचारों में निर्मलता आती है, सांसारिकता की क्षणभंगुरता और अनित्यता पर विश्वास जमने. लगता है, भेदविज्ञान की धार गहरी होने लगती है और साधन-साध्य की त्रिशुद्धि से चेतना जागरूक हो जाती है। ___ आदतों का मूल कारण अतृप्त वासना जाल है जो कभी तृप्त हो भी नहीं पाता। वह तो एक गोलचक्कर है जिसका कहीं कोई अन्त ही नहीं। 'मैं' और 'मम' की समस्या से भरा यह व्यक्ति जलपोतकाक न्याय के अनुसार चारों तरफ घूमकर पुन: वही बैठ जाता है। उसे संसार सागर का अन्त ही दिखाई नहीं देता। आदत का वशीभूत व्यक्ति पशु से भी गया बीता हो जाता हैं पशु जगत् में तनाव का क्रम रहता है- परिग्रह, मैथुन, भय और भोजन। सर्वाधिक तनाव उसमें मन में भोजन, परिग्रहण और काम (मैथुन) काम वासना उसके लिए सर्वाधिक तनाव का कारण बनता हैं यही से व्यसनों के चक्कर में वह फंसने लगता है। ____ व्यसनों से मुक्त होने का सरल तरीका यह है कि व्यक्ति आवेगों से मुक्त रहे, प्राकृतिक भोजन करे, सह-अस्तित्व की भावना रखे, मानसिक चंचलता से बचने के लिए ध्यान करे और प्रतिक्रिया से दूर रहे। आज सारी वर्जनाये समापत हो रही है। टी० व्ही० और विज्ञापन के माध्यम से व्यसनों ने व्यक्ति के मन में बुरी तरह से सेंध लगाना शुरु कर दिया है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर आवेगों को रोकने के लिए नस काट सकता है पर वह उसका स्थायी समाधान नहीं हैं स्थायी समाधान है आध्यात्मिक प्रक्रिया को प्रारम्भ कर देना। व्यसन मुक्त समाज की स्थापना इसी से हो सकती है सामाजिक प्रदूषण दूर करने का उपाय यही है। व्यसन वस्तुत: भोगवाद की परिणति है जो क्षणभर के लिए भले ही तृप्तिकारी प्रतीत हो पर पर्यवसान में वह एकान्त दुःखदायी होती है। परिस्थिति का बहाना मात्र
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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