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________________ आचार्य वसुनन्दि आचार्य वसुनन्दि ने अपने जन्म से किस देश को पवित्र किया, किस जाति में जन्म लिया, उनके माता-पिता का नाम क्या था, जिमदीक्षा कब ली और कितने समय जीवित रहे, इन सब बातों को जानने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है । ग्रन्थ के अन्त में दी हुई प्रशस्ति से केवल इतना पता चलता है कि श्री कुन्दकुन्दाचार्य की परम्परा में श्रीनन्दि नाम के एक आचार्य हुए। उनके शिष्य नयनन्दि और उनके शिष्य नेमिचन्द्र हुए और उनके शिष्य आ० वसुनन्दि हुए। विविध प्रमाणों से आ० वसुनन्दि का समय बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध निश्चित किया जा सकता है। आ० वसुनन्दि नाम के कई आचार्य हुए हैं । उनमें से प्रस्तुत ग्रन्थकार ने किन और कौन-कौन सी कृतियों की रचना की है यह तो निश्चित नहीं कहा जा सकता किन्तु निम्न कृतियों को अवश्य उनके नामान्तर्गत रखा जा सकता है - वसुनन्दिश्रावकाचार ( उपासकाध्ययन), प्रतिष्ठापाठ (वसुनन्दि-प्रतिष्ठापाठ) और मूलाचारवृत्ति, आप्त-मीमांसावृत्ति, जिनशतक टीका । सम्भवत: मूलाचार पर वृत्ति करने के बाद आपको 'सैद्धान्तिक' उपाधि से परवर्त्ती विद्वानों ने स्मरण किया है।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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