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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार ३३२ परिशिष्ट गाथानुक्रमणिका गाथाङ्क ३०७ .१३९ ११८ १८ २०० गाथाङ्क अह ण भणइ तो भिक्खं १३५ अह तेवंडं तत्तं १६१ । अह भुंजइ परमहिलं अहवा किं कुणइ पुरा आ . आउ-कुल-जोणि-मग्गण आगमसत्थाई लिहा आगासमेव खित्तं . १६४ आयंविल-णिब्वियडी आहरणवासियाहिं .. २६६ आहारोसहसत्था २३५ २५२ २३७ २९२ ६५ ३०४ १९० २३९ १६ ८२ अइणिटुरफरसाइं अइतिव्वदाहसंता अइथूल-थूल-थूलं अइलंघिओ विचिट्ठो अइवुड्डबालमूयं अइसरसमइसुगंधं . अक्खेहि णरो रहिओ अणित्ता गुरुवयणं अग्गिविसचोरसप्पा अच्छरसयमज्झगया अण्णाणि एवमाईणि अण्णाणिणो वि जम्हा अण्णे कलंबवालुयअण्णे उ सुदेवत्तं अण्णो उ पावरोएण अण्णोण्णं पविसंता अण्णोणाणुपवेसो अण्णो वि परस्स धणं अतिहिस्स संविभागो अत्तागमतच्चाणं अत्ता दोसविमुक्को अयदंडपासविक्कय अरहंतभत्तियाइसु अलियं करेइ सवहं अलियं जंपणीयं असणं पाणं खाइम असुरा वि कूरपावा अह कावि पावबहुला ७७ ३१७ इच्चाइगुणा बहवो इच्चेवमाइबहुवो . इच्चेवमाइबहुयं । १८७ इय अवराई बहुसो. ३८ | इय एरिसमाहारं . ४१ १०८ | उक्किट्ठभोयभूमी उच्चारं पस्सवणं ६ | उज्जाणम्मि रमंता ७ उत्तम-मज्झ-जहण्णं उत्तविहाणेण तहा उद्दिट्ठपिंडविरओ ६७ | उप्पण्णपढमसमयम्हि २१० । उवगृहणगुणजुत्तो २३४ | उववायाओ णिवडइ १७० | उववास-वाहि-परिसम११९ | उंबर-वड-पिप्पल-पिंप २५८ ७२. १२६ २८० २१६ २८८ -३१३ १८४
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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