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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार ३२० परिशिष्ट हैं, मुझे विश्वास है कि आप कभी झूठ नहीं बोलेंगे अपने कपिलजी का दुराचार देखकर मुझे विश्वास नहीं होता कि ये आप जैसे पवित्र ब्राह्मण के पुत्र हो। धरणीधर ने सारी बातें कह सुनाई और उसी दिन रत्नसंचयपुर के लिये चल पड़ा। सत्यभामा की घृणा और भी बढ़ गयी। वह कपिल से बोलना चालना छोड़कर एकान्तवास करने लगी। इस प्रकार घृणा करते देखकर कपिल बलात्कार करने पर उतारू हो गया; किन्तु सत्यभामा ने श्रीषेण महाराज के यहाँ जाकर सब बातें कह सुनायीं। श्रीषेण अत्यन्त क्रोधित हुए। उन्होंने कपटी कपिल को देश से निकाल दिया। दुष्टों को दण्ड देना राजा. का धर्म है। ऐसा न करने से वह च्युत होते हैं। एक बार आदित्यगती और अरिंजय . नाम के दो मुनिराज श्रीषेण के यहाँ आहार के लिए पधारे। राजा ने आदरपूर्वक आहार कराया। इस पात्रदान से देवों ने रत्नों और सुगन्धित फूलों की वर्षा की। पश्चात् श्रीषेण. ने अनेक वर्षों तक राज्य किया। मृत्यु के बाद वे धातकीखण्ड के उत्तरकुरु भोगभूमि में उत्पन्न हुए। उनकी दोनों रानियाँ तथा सत्यभामा भी भोगभूमि में उत्पन्न हुई। इस : भोगभूमि में लोग कल्पवृक्षों से प्राप्त होने वाले सुखों को भोगते हैं। आयु पूर्ण होने तक ऐसा ही सुख भोंगेगे। यहाँ के लोगों के भाव सदा, पवित्र रहते हैं। यहाँ न किसी की सेवा करनी पड़ती है और न किसी को अपमान सहन करना पड़ता है। श्रीषेण ने भोगभूमि का पूरा सुख भोगा। अन्त में वे स्वर्ग में गये। यहाँ भी दिव्य सुख भोग कर पुन: मनुष्य हुए। कई बार ऐसे ही परिवर्तन होने के बाद श्रीषेण ने हस्तिनापुर के महाराज विश्वसेन की रनी ऐरा के यहाँ अवतार लिया। यही सोलहवें तीर्थङ्कर के नाम से प्रसिद्ध हुए। जन्म के समय देवों ने उत्सव मनाया। सुमेरु पर्वत पर क्षीरसमुद्र के जल से इनका अभिषेक किया गया। भगवान् शान्तिनाथ का जीवन बड़ी पवित्रता से व्यतीत हआ। अन्त में योगी हो, धर्म का उपदेश कर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। यह पात्रदान का फल है। जो लोग पात्रों को भक्तिपूर्वक दान देंगे वे अवश्य उच्च सुख प्राप्त करेंगे। २. धनपति सेठ की पुत्री वृषभसेना की कथा (औषधदानफल) भारत के कावेरी नामक नगर के राजा का नाम उग्रसेन था। वे प्रजापालक तथा राजनीति के बड़े विद्वान् थे। इसी नगर में धनपति नाम का एक सेठ रहता था। इसकी पत्नी धनश्री माने लक्ष्मी थी। धनश्री की एक देवकुमारी-सी पुत्री उत्पन्न हुई, जिसका नाम वृषभसेना रखा गया। एक दिन की घटना है कि वृषभसेना की धाय रूपवती उसे स्नान करा रही थी। एक महारोगी कुत्ता उस गड्ढे में गिर पड़ा जिसमें वृषभसेना के स्नान करने का पानी इकट्ठा हो गया था। जब कुत्ता पानी से बाहर हुआ तो बिल्कुल निरोग दिख पड़ा। रूपवती चकित हो गई। उसने समझ लिया कि वृषभसेना असाधारण लड़की है। उसने जल की परीक्षा के लिये थोड़ा-सा जल अपनी मां की आँखों में डाल दिया। उसकी माँ की आँखें वर्षों से खराब थीं। उसका भी रोग जाता रहा। अब रूपवती का सारा सन्देह दूर हो गया। इस रोग को नाश करने वाले जल के प्रभाव से रूपवती की
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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