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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (३१८) आचार्य वसुनन्दि समय एवं स्थान आश्विन शुक्ला द्वादशी, दिन है गुरु महान । पन दो पन दो है कहा, वीर प्रभु निर्वान । । १ । । तीरथ काशी गा रहा, क्षमा धर्म की बात । क्षमा धारने से मरु, हुआ था पारसनाथ ।। २ ।। विघ्नहरण - मंगल करन, बोलो काशी नाथ । विश्वनाथ पारस कहो, सब ही पारसनाथ ।। ३।। चन्द्रपुरी में चन्द्र जिन, सिंहपुरी में श्रेय । जन्में काशी के निकट, दान करें मम ध्येय ।।४।। जन्में नाथ सुपार्श्व जी, पार्श्वनाथ भगवान । काशी नगरी में किया, पूर्ण बोध मय काम ।।५।। गमक सिंधु आदि गुरु, वर आचार्य महान । महावीर कीर्ती गुरु, सन्मति सिन्धु प्रणाम । । ६ । । व्याख्या सन्मति बोधिनी, कही जिनानुसार । त्रुटि कहीं मम रह गई, धी जन पढ़े सुधार ।।७।। ।। समाप्तोऽयं ग्रन्थः । । पन-५, दो-२, पन-५, दो-२, ५२५२ 'अंकानां वामतो गति:' के अनुसार वीरनिर्वाण संवत् २५२५.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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