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वसुनन्दि-श्रावकाचार (३१३) आचार्य वसुनन्दि) श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है
वासरे च रजन्यां च यः खादन्नेव तिष्ठति।
शृङ्गपुच्छ परिभ्रष्टः, स: स्पष्ट पशुरेव हि।।यो० शा०।। अर्थ- जो दिन और रात दोनों में खाता रहता है, वह बिना सींग और पूछ वाला स्पष्टत: पशु ही है। - रात्रि भोजन करने वाला अनेक पापों का संग्रह करके नरक और तिर्यञ्चगति का पात्र होता हुआ भयानक दुःखों को प्राप्त होता है। कदाचित् मनुष्य भी होता है तो लंगड़ा, बहरा, अंधा, गरीब अथवा कुष्टी होता है। देवों में जाता है तो नीच देव होता है और बहुत प्रकार के दुःखो को भोगता है। इन सभी दोषों से बचने के लिए रात्रि भोजन का त्याग अवश्य ही कर देना चाहिए।
सूर्य के प्रकाश में नीलाकाश के रंग के सूक्ष्म कीटाणु स्वत: नष्ट हो जाते हैं उनका प्रसार और प्रभाव रात्रि में होता है। वे सूक्ष्म जीव सूर्य के तेज प्रकाश में भी आँखों से दिखाई नहीं देते। भोजन में गिरकर वे मर जाते है जिससे रात्रिभोजी को हिंसा का दोष लगता है और उन कीटाणुओं के पेट में जाने से अनेक असाध्य रोग भी हो जाते हैं। . . . रात्रि भोजन की महता दिखाते हुए महाभारतकार ने लिखा है
ये रात्रौसर्वदाऽऽहारं वर्जयंति सुमेधसः।।
तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते।।शांतिपर्व १६।। ___ अर्थ- जो श्रेष्ठ बुद्धि वाले विवेकी मनुष्य रात्रि में भोजन करने का सदैव के लिए त्याग करते हैं, उनको एक माह में १५ दिन के उपवास का फल प्राप्त होता है। सूर्य प्रकाश और विज्ञान
जब सूर्य की किरणें किसी तिरछे शीशे अथवा प्रिज्म से गुजरती हैं तो उसमें सात रंग दिखाई पड़ते हैं जो बैंगनी, गुलाबी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल होते हैं। यह रंग सूर्य प्रकाश के आन्तरिक अंश व रूप हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं। सर्वाधिक विटामिन 'डी' इन्हीं से प्राप्त होता है। ये जीवन शक्ति प्रदायक प्राणतत्त्व अर्थात् आवश्यक अग्नि का सर्जन करते हैं। सूर्य प्रकाश की इन्फ्रारेड और अल्ट्रा वायलेट किरणें एक्स-रे की तरह पुदगल के भीतर तक घुसकर कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं। इनके सद्भाव में कीटाणु शारीरिक क्षति नहीं पहुँचा सकते। आधुनिक विज्ञानवेत्ता ऐसी नकली किरणे बनाकर विभिन्न रोगों की जानकारी प्राप्त करने और उन्हें