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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (२६३)
आचार्य वसुनन्दि) ५२. चक्र व्यूह - चक्राकृति में सेना को स्थापित करने की कला ५३. गरुड़ व्यूह - गरुडाकृति में सेना को सुसज्जित करने की कला ५४. शकट व्यूह - शकटाकृति में सेना को सज्जित करने की कला ५५. युद्ध-कला - रण-क्षेत्र में युद्ध की कलाबाजियों का ज्ञान ५६. नियुद्ध - पैदल युद्ध करने की कला ५७. युद्धातियुद्ध - तलवार, भाला आदि फेंककर युद्ध करने की कला का ज्ञान ५८. मुष्टियुद्ध - मुक्कामारी कर युद्ध करने की कला ५९. बाहुयुद्ध - भुजाओं द्वारा युद्ध करने की कला ६०. लतायुद्ध - लताओं द्वारा शत्रुओं को वेष्टित कर पराजित करने की
कला
६१. इषु-शस्त्र-तथा - नाग बाण के प्रयोग तथा छुरा फेंककर आक्रमण करने की
क्षुर-प्रवाह कला ६२. धनुर्वेद - धनुष-विद्या में प्रवीणता ६३. हिरण्यपाक -. रजत-सिद्धि-कला ६४. सुवर्ण-पाक - स्वर्ण-सिद्धि-कला ६५. वृत्त-खेल - रस्से पर चलने की कला . ६६. सूत्र-खेल - कच्चे सूत्र पर चमत्कारी कार्य दिखाने की कला ६७. नालिका-खेल - नालिका में पाँसे या कौड़ियाँ डालकर अपना दाँव जीतने
की कला ६८. पत्रच्छेद्य-कला - १०८ पत्तों की यथेष्ट संख्या के पत्तों को एक बार में
छेदन-भेदन ६९. काष्ठच्छेद-कला- चटाई के समान क्रमश: फैलाए गए पत्रादि के छेदन की
क्रिया को जानने की कला ७०. सजीव - पारद आदि मारित धातुओं को पुनः सजीव करना ७१. निर्जीव - पारद, स्वर्ण आदि धातुओं का मारण करना ७२. शकुनरुत - पक्षियों के शब्द, गति, चेष्टा आदि जानने की कला