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मन, वचन, कार्य से संयमी व्यक्ति स्व-पर का रक्षक तथा मानवीय गुणों का आगार होता हैं शील, संयमादि गुणों से आपूर व्यक्ति ही सत्पुरुष हैं जिसका चित्त मलीन व दूषित रहता है वह अहिंसा का पुजारी कभी नहीं हो, सकता। जिस प्रकार घिसना, छेदना, तपाना, रगड़ना इन चार उपायों से स्वर्ण की परीक्षा की जाती है, उसी प्रकार श्रुत, शील, तप और दया रूप गुणों के द्वारा धर्म एवं व्यक्ति की परीक्षा की जाती है। (भावपाहुड. १४३ टीका)
जीवन का सर्वागीण विकास करना संयम का परम उद्देश्य रहता है। सूत्रकृतांग में इस उपदेश को एक रूपक के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया गया है जिस प्रकार कछुआ निर्भय स्थान पर निर्भीक होकर चलता-फिरता है किन्तु भयं की आशंका होने पर शीघ्र ही अपने अंग-प्रत्यंग प्रच्छन्न कर लेता है, और भय-विमुक्त होने पर पुन: अंग-प्रत्यंग फैलाकर चलना-फिरना प्रारम्भ कर देता है, उसी प्रकार संयमी व्यक्ति अपने साधना मार्ग पर बड़ी सतर्कता पूर्वक चलता हैं संयम की विराधना का भय उपस्थित होने पर वह पंचेन्द्रियों व मन को आत्मज्ञान (अंतर) में ही गोपन कर लेता है- .
जहा मुम्मे स अंगाइ सए देहे समाहरे । एवं पावाइं मेहावी अज्झप्पेण समाहरे।। सूत्रकृतांगः १.८.६
संयमी व्यक्ति सर्वोदयनिष्ठ रहता है। वह इस बात का प्रयत्न करता है कि दूसरे के प्रति वह ऐसा व्यवहार करे जो स्वयं को अनुकूल लगता हो। तदर्थ उसे मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भावनाओं का पोषक होना चाहिए। सभी सुखी और निरोग हों, किसी को किसी प्रकार का कष्ट न हो ऐसा प्रयत्न करे।
सर्वेऽपि सुखिनः सन्तु सन्तु सर्वे निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।। याऽकार्षीत् कोऽपि पापानि यां च भूत कोऽपि दुःखतः। मुच्यतां जगदप्येषा मति मैत्री निगद्यते।।
यशस्तिलकचम्पू उत्तरार्ध दूसरों के विकास में प्रसन्न होना प्रमोद है। विनय उसका मूल साधन है। ईर्ष्या उसका सबसे बड़ा अन्तराय है। कारुण्य अहिंसा भावना का प्रधान केन्द्र हैं दुःखी व्यक्तियों पर प्रतीकात्मक बुद्धि से उनमें उद्धार की भावना ही कारुण्य भावना है। माध्यस्थ भावना के पीछे तटस्थ बुद्धि निहित है। नि:शंक होकर क्रूर कर्मकारियों पर आत्मप्रशंसकों पर, निंदकों पर उपेक्षाभाव रखना माध्यस्थ भाव है। इसी को समभाव भी कहा गया हैं समभावी व्यक्ति निमोही, निरहंकारी, निष्परिग्रही, स्थावर जीवों का संरक्षक तथा लाभ-अलाभ में, सुख-दुःख में, जीवन-मरण में, निन्दा-प्रशंसा में, मान-अपमान में,