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________________ (v) १८३ १७३ १८४ १७४ १८५ १७४ १८६ १७५ १८७-९० १७६ १७७ १९२-९३ १७८ १७९ १९४ १९५-९८ १९९-२०० . १८० . — मनुष्यगति दुःख वर्णन ९७. व्यसनों से संयोग-वियोग के दुःख ९८. भूख-प्यास की वेदना से मरण ९९. माँ-बाप के अभाव में दुःख १००. पापात्मा को भीख भी नहीं मिलती १०१. कुष्टादि रोगजनित दुःख देवगति दुःख वर्णन १०२. व्यसन फल से देवगति में दुःख १०३. देवगति में मानसिक दुःख १०४. देवों की नीच जातियां १०५. मरण के चिह्न, व्याकुलता एवं अशरणता १०६. मरणकाल में देवों की विवशता १०७. देव निदान से एकेन्द्रिय होते हैं १०८. मिथ्यात्व दुःख का कारण १०९. संसारवास को धिक्कार ११०. व्यसनों से बहुत प्रकार के दुःख .: ग्यारह प्रतिमा-वर्णन १११. दर्शन प्रतिमा वर्णन ११२. दर्शन प्रतिमा का उपसंहार ....द्वितीय प्रतिमा वर्णन ११३. सामान्य से पंचाणुव्रतों का लक्षण निर्देश ११४. अहिंसाणुव्रत का लक्षण ११५. सत्याणुव्रत का लक्षण ११६. अचौर्याणुव्रत का लक्षण ११७. ब्रह्मचर्याणुव्रत का लक्षण ११८. परिग्रह परमाणाणुव्रत का लक्षण २०११८२ २०२ १८३ २०३ १८३ २०४ १८४ २०५ १८५ २०६. १८९ २०७. १९० २०८ १९२ P १९४ २१० १९९ २१२ । २०१ २१३ २०४
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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