SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२-५५ ६७ ५६ ७९ ८१ ६०-६९ ८३ ७०-७९ ८८ ९४ ९८ १०४ १०५ ८८-१९३ १०७ ४६. आठ अंगों में प्रसिद्ध होने वालों के नाम ४७. आठ गुणों से युक्त जीव ही सम्यग्दृष्टि है सामान्य श्रावकाचरण ४८. दर्शन (सामान्य) श्रावक का लक्षण ४९. उदुम्बर फलों के नाम सप्तव्यसनों के नाम ५१. जुआ खेलने से हानियां मद्य दोष वर्णन ५३. मधु दोष वर्णन मांस-दोष वर्णन ५५. मांस भक्षण के और भी दोष ५६. लौकिक शास्त्रों में मांस के दोष ५७. वेश्यागमन दोष वर्णन ५८. शिकार दोष वर्णन ५९. चौर्यदोष वर्णन . ६०. परस्त्रीगमन दोष-वर्णन ६२: मद्यपायी यादव ६३. मांसलोलुपी राजा बक • ६४. वेश्यागमन में प्रसिद्ध चारुदत्त ६५. शिकार व्यसन में प्रसिद्ध ब्रह्मदत्त ६६. चोरी व्यसन में प्रसिद्ध श्रीश्रूति ६७. परस्त्री व्यसन में प्रसिद्ध रावण ६८. सप्तव्यसनों का उपसंहार ६९. सप्तव्यसन सेवी रुद्रदत्त ७०. व्यसन के दुष्परिणामों से संसार के दुःख नरक गति दुःख वर्णन ७१. व्यसन सेवी नरकों में उत्पन्न होता है ९४-१०० ११३ १०१-१११ ११६ ११२-१२४ १२१ • १२६ १२८ १२७ १२८ १२८ १३२ १२९ १३८ १३० १३९ १३१ १४० १३२ १४२ १३३ १४३ १३४ १४३ १३५-१३६ १४४
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy