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________________ १२ . श्री गुणानुरागकुलकम् भगवान् श्रीहरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज धार्मिक शिक्षा देते हुये लिखते हैं कि - "येस पओसो मोहो, विसेसओ जिणमयठियाणं" ___"धर्म के निमित्त अन्य किसी धर्मवाले के साथ द्वेषभाव रखना येक प्रकार का अज्ञान है, किन्तु जिनेन्द्रमत में स्थित पुरुषों को तो विशेषतः अज्ञान का कारण है।" इस वास्ते राग द्वेष के वश न हो सत्य (सद्गुण) के ओर ही मन को आकर्षित रखना उचित है। क्योकि "जबलों राग द्वेष नहीं जीतहि, तबलों मुगति न पावे कोई" जब तक राग द्वेष नहीं जीता जायगा तब तक मुक्ति सुख नहीं मिल सकता, न हृदयक्षेत्र की शुद्धि होकर गुणानुराग का अंकुर ही ऊग सकता है। कलह चौथा दुर्गुण 'कलह' है, जो कुसंप बढ़ाने का मुख्य हेतु है। यह बात को निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि जहाँ संप नहीं है, जहाँ मिलन स्वभाव नहीं है, जहाँ सभी नेता हैं, जहाँ कोई किसी की आज्ञा में नहीं चलता, अथवा जहाँ मनमाने कार्य करने वाले हैं, वहाँ सम्पत्ति और सद्गुणों का अभाव ही है। लोगों की कहावत है कि - . जहँ सब संप रमत है, तहँ सुखवास लहरी। ' जहँ चलत फूट फजीता, तहँ नित टूट गहरी ॥१॥
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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