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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् वस्तुतः राग - द्वेष रहित करुणाशाली महोत्तम पुरुष ही संसार में पूज्य पद के योग्य हैं और ऐसे पुरुषोत्तमों का वन्दन पूजन मनुष्यों को अवश्य गुणानुरागी बनाकर योग्यता पर पहुंचा सकता है। सकल कल्याण के स्थान जिनेन्द्र भगवंतों के चरण कमल में नमस्कार करने से अपने हृदय में सद्गुण की प्रतिभा प्रकाशित होती है। जिसके बल से गुणनिधान हो, सेवक ही सेव्य पद की योग्यता को अवलम्बन करता है। कहा भी है कि - इक्को वि नमुक्कारो, जिणवर - वसहस्स वद्धमाणस्स। संसारसागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ॥१॥ भावार्थ - सामान्य केवलज्ञानियों में वृषभ समान (तीर्थङ्कर नाम कर्म के उदय से श्रेष्ठ) श्री वर्द्धमानस्वामी के प्रति बहुत नमस्कार तो क्या? किन्तु शुद्धभाव और अनुराग रखकर श्रद्धापूर्वक एक बार भी जो स्त्री अथवा पुरुष नमस्कार करता है, तो उससे वह संसारसमुद्र से तर (पार हो) जाता है। तथा सर्वगुणसम्पन्न जिनेश्वरों की सेवा भक्ति से ही मनुष्यों में सद्गुण प्रकट होते हैं, और उत्तमता प्राप्त होती है। . यहाँ पर यह शंका हो सकती है कि - परमेश्वर विद्यमान नहीं है, फिर उनके चरणकमलों में नमस्कार किस प्रकार किया जा सकता है? . इसके उत्तर में श्री.जिनवल्लभसूरिजी महाराज ने लिखा है तुममच्छिहिं न दीससि, नाराहिज्जसि पभूयपूयाहिं। किं तु गुरुभत्तियेणं, सुवयणपरिपालणेणं च ॥१॥ भावार्थ - हे परमेश्वर ! आप नेत्रों से नहीं दीख सकते और अनेक पूजाओं से भी आपकी आराधना नहीं हो सकती, किन्तु प्रभूत भक्ति (आन्तरिक
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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