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जिन मंदिर गुरु मंदिर की योजना बनाकर निर्माण कार्य प्रारंभ किया जो युगों-युगों तक श्री छाजेड़ का गुण गाता रहेगा। श्रीमती छाजेड़ के सुसंस्कार ऐसे होवें कि पुत्रों में भी एक पुत्र में कोई व्यसन नहीं हैं। श्रीमती छाजेड़ की छोटी बहन दीक्षा ग्रहण कर त्रिस्तुतिक श्रीसंघ में साध्वी श्री महेन्द्रश्रीजी के नाम से वरिष्ठ साध्वीजी के रूप में अपनी विद्वता से नारी समाज का सफल दिशा दर्शन करती है। श्री छाजेड़जी के पिता श्री का शुभनाम श्री.
मलजी छाजेड़ है। तो धर्म पिता का नाम भी श्री केशरीमलजी बाफना है। स्वयं का नाम मांगीलाल है तो श्रीमती का नाम भी श्रीमती मांगीबाई है। ऐसे योग कम ही मिलते हैं। श्री छाजेड़जी के छोटे भाई श्री भागचन्दजी छाजेड़ हैं, वे राजगढ़ निवास करते हैं एवं अपने बड़े भाई के अनुरूप ही देव गुरु धर्म की सेवा उनका प्रमुख लक्ष्य है एवं अधिकतम समय श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में ही सेवा भाव से समय व्यतीत करते हैं। '
आज श्री मोहनखेड़ा विशाल और भव्यता लेकर जगत के प्रसिद्ध तीर्थो के नक्शे में चमक रहा है। यह श्री छाजेड़जी के अथक श्रम, दीर्घदृष्टि, पक्के विचार और निर्भीकता का ही परिणाम है, क्योंकि श्री छाजेड़ का चिन्तन निष्पक्ष बिना पूर्वाग्रह से दूर होता है। वह कार्य समाज के लिए गौरवपूर्ण होता है। अभी वृद्धावस्था के कारण शरीर में कमजोरी अधिक होते हुए भी जरा सा सन्देश पहुंचाने पर इनके राय लेने जैसा कार्य होता है। तो यह शरीर की किसी भी प्रकार की चिन्ता न कर मोहनखेड़ा पहुंच जाते हैं। कभी श्री छाजेड़ की तबीयत कम विषय पर विचार कम हो तो श्रीमती