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राय ली जाए और राजस्थान में त्रिस्तुतिक समाज का कार्य हो तो आहोर श्रीसंघ की राय ली जाए, क्योंकि श्री रत्न विजयजी से श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. को आहोर में अचार्य पद प्राप्त हुआ था और शुद्धसाध्वाचार का मार्ग क्रियोद्धार करके जावरा नगर में राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा किया था। इसलिए आहोर और जावरा श्रीसंघ की राय लेना आवश्यक है। . आचार्य पद का निर्णय होकर जब आमंत्रण पत्रिका समाज में गई तो प्रतिष्ठोत्सव के साथ आचार्य पद समारोह को देख अचानक समाज में ज्वार भाटा उफान आया कि छोटे-मोटे तो हिल जाएं किन्तु श्री छाजेड़जी हिमालय के समान अटल रहे जो भी जैसा प्रश्न लेकर आया उसको पूर्ण रूप से समझाकर सहमत कर लेते थे। प्रश्नकर्ता जहां तक पूर्ण संतुष्ट नहीं होता यह उसे छोड़ते भी नहीं थे। उस समय के वातावरण में श्री छाजेड़जी को देखा है। गुरुदेवश्री की आज्ञा का पालन करना अपना परम कर्तव्य समझकर छाजेड़जी ने जो श्रम करके गुरु आज्ञा का पालन किया उसी का फल था कि जो दो दल होने की संभावना उस समय थी वह नहीं हुई और सर्वानुमत से एकत्र होकर आचार्य पद का एवं प्रतिष्ठा महोत्सव का कार्यक्रम चतुर्विध श्रीसंघ के सहयोग से सानन्द सम्पन्न हुआ। . धार नगर में त्रिस्तुतिक संघ का आराधना स्थल स्वतंत्र नहीं होने से आराधना में कमी थी। यह पुण्य कार्य श्रीमती मांगीबाई की
अन्तरप्रेरणा से श्री छाजेड़जी ने समाज के वरिष्ठ श्री गेंदालालजी बाफनाजी से परामर्श कर दोनों गुरु भक्तों ने अपने पूर्ण श्रम से श्री राजेन्द्र भवन जैन उपाश्रय का विशाल भवन बनाया एवं एक