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________________ २३१ श्री गुणानुरागकुलकम् तदनुसार ही कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए। परन्तु संसार में विरले ही इस नियम को समझते होंगे, इसलिए उनका जीवन सर्वदा असफल ही होता है। (मनुष्यविचार पृष्ठ १६) । ___जो भले विचारों को हृदयङ्गम कर गुणानुराग रखते हैं, और उत्तमपथगामी बन गुणोपार्जन करने में लगे रहते हैं, उन्हें उपकार परायण उत्तम पद मिलने में किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। संसार में आदर्श पुरुष बन जाना यह गुणानुराग का ही प्रभाव है। हर एक व्यक्ति गुण से महत्वशाली बन सकता है, जिसमें गुण और गुणानुराग नहीं है वह उत्तम बनने के लिए अयोग्य है। निन्दा करने से गुण और पुण्य दोनों का नाश होता है और गुणानुराग से वृद्धि होती है। परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, लोलुपता, विषय और कषाय इन पाँच बातों से साधुधर्म भी नष्ट होता है तो दूसरे गुण नष्ट हों इसमें आश्चर्य ही क्या है। जिस प्रकार एक ही सूर्य सारे संसार में प्रकाश करता है और चन्द्रमा अपनी अमृत किरणों से सबको शीतलता देता है उसी प्रकार गुणानुरागी पुरुष अकेला ही अपने हार्दिक प्रेम से समस्त पृथ्वी मंडल को अपने वश में कर सकता है। और दूसरों को भी उत्तम पद पर पहुंचा सकता है। अतएव हर एक मनुष्य को चाहिए कि अपने स्वभाव को गुणानुरागी बनावें और नीचे लिखी हुई शिक्षाओं को अपने हृदय में धारण करने का प्रयत्न करें। . शिक्षासुधा -1 १. सज्जनों के साथ बैठना चाहिए, सज्जनों की संगति में रहना चाहिए और सज्जनों के ही साथ विवाद करना चाहिए। दुर्जनों से किसी प्रकार का संपर्क (सहवास) नहीं करना चाहिए।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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