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श्री गुणानुरागकुलकम्
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करेगा तो बुराई मिलेगी । कथानुयोग के ग्रन्थों को देखने से स्पष्ट जान पड़ता है कि प्रत्येक व्यक्ति का जैसा आचरण होता है वैसा ही फलभवान्तर में अथवा भवान्तर में किया हुआ. इस भव में मिलता है। अर्थात् जो सदाचारी, गुणानुरागी और सुशील होगा तो भवान्तर में भी वैसा होगा, और दुराचारी, परापवादी होगा तो उसके अनुसार वह भवान्तर में भी दुराचारी प्रिय होगा। क्योंकि - सदाचारी और सदाचार प्रशंसक दोनों शुभगति तथा दुराचारी और दुराचार प्रशंसक दोनों अशुभगति के भाजन हैं।
हर एक पुरुष या स्त्री को इतना अवश्य जान लेना चाहिए कि - गुणरत्नविभूषित पुरुषों का जितना बहुमान किया जाय, वह शुद्ध मन से करना चाहिए। क्योंकि मनः शुद्धि के बिना आत्मबल का साधन भले प्रकार नहीं हो सकता, चाहे जितना तप, जप सामयिक, प्रतिक्रमण, पूजा, यात्रा, देवदर्शन, केशलुंचन, मौनव्रत आदि धार्मिक कार्य किया जाय, किन्तु उनका वास्तविक फल मनः शुद्धि हुए बिना नहीं मिल सकता। जिस प्रकार शारीरिक बल बढ़ाने के लिए बलवर्द्धक पदार्थ उदरस्थित मल को साफ किए बिना कार्यकारी नहीं होते, उसी प्रकार मन की मलिनता दूर किए बिना . आत्मबल की सफलता नहीं होती। कहावत है कि - 'मन चङ्गा तो कथरोट में गङ्गा ।'
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वास्तव में महात्मा और आदर्श पुरुष बनना कोई दैवी घटना नहीं है और न किसी दूसरे की कृपा का फल है, किन्तु वह अपने ही विचारों के ठीक ठीक पथ पर ले चलने के लिए किए गए निरन्तर प्रयत्न का स्वाभाविक फल है। महान और आदरणीय विचारों को हृदय में स्थान देने से ही कोई-कोई महात्मा हुए हैं, इसी तरह दुष्ट