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________________ २२७ श्री गुणानुरागकुलकम् गवि दुग्धं रणे ग्रीष्मे, वर्षाहेमन्तयोरपि। नृणा त्राणं तृणादेव, तत्समत्वं कथं भवेत? ॥११॥ भावार्थ - गोजाति में दूध होता है। संग्राम, वर्षा और हेमन्त ऋतु में तृण से ही मनुष्यों का रक्षण होता है। ये गुण गुणहीन पुरुष में नहीं हैं इससे वह तृण के समान कैसे हो सकता है? _ संसार में सभी प्राणियों का पालन तृण करता है। यदि एक ही वर्ष तृण पैदा नहीं होता तो असंख्य प्राणियों के प्राण चले जाते हैं। मंदिर आदि जितनी इमारतें हैं वे तृण की सहायता से ही बनती है। यदि तण न हो तो अमृत के समान मधुर दूध दही भी मिलना कठिन है। .. विद्वान धनपाल ने कहा तो 'मनुष्यरूपेण हि धूलितुल्याः' मनुष्यरूप से धूलि कसमानन मानना ठीक होगा। वादी ने धूलि का पक्ष लेकर कहा कि - . . कारयन्ति शिशुक्रीड़ां, पङ्कनाशं च कुर्वते। रजस्तात्कालिके लेखे, क्षिप्तं क्षिप्रं फलप्रदम ॥१२॥ .. भावार्थ - बालकों को लीला कराना, कीचड़ को नाश करना, तत्कालिक लेख में स्याही सुखाने के लिए डाला हुआ रज (धूलि) शीघ्र ..फलदायक होता है। ये चार गुण धूलि में महत्त्वशाली है, अतएव गुणहीन धूलि तुल्य भी नहीं हो सकता। . अन्त में अगत्या पंडित धनपाल ने यह निर्धारित किया कि संसारमंडल में प्रत्येक वस्तु गुणों से शोभित है किन्तु गुणहीन मनुष्य किसी प्रकार शोभा के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए हर एक मनुष्य को गुणरूप रत्न संग्रह करने में उद्यत रहना चाहिए, और जो गुणी हैं उनका यथाशक्ति बहुमान करना चाहिए।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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