________________
३. गौतम - पृच्छा - आकार डेमी १२ पेजी, पृष्ठ संख्या २४ है। मूल्य दो आना है। सं. १९७१ में जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय - जैन संघ रतलाम वालों के तरफ से मुद्रित। किसी प्राचीन जैनाचार्य कृत ६४ प्राकृत गाथा मय ‘गोयमपुच्छा' नामक छोटा-सा ग्रंथ है। उसी के मूल-मात्र का यह हिन्दी अनुवाद है। संसार में कोई राजा है, तो कोई रंक, कोई सुखी है, तो कोई दुःखी, कोई काणा है, तो कोई अंधा, कोई लूला है, तो कोई कूबड़ा और कोई बहिरा है, तो कोई मूक। यह सब किन-किन कर्मों से उदयागत हैं। इस बात को समझने के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। इसकी प्रथमावृत्ति में १०००, द्वितीया वृत्ति में ४००० जासेलगढ़ के रहने वाले सेठ सरूपचंद हकमाजी के तरफ से और तीसरी आवृत्ति में १००० कॉपी रतलाम संघ के तरफ से छप चुकी है, इसी से इसकी उपयोगिता का अनुमान किया जा सकता है।
४. श्री नाकोडा - पार्श्वनाथ - आकार डेमी १२ पेजी, पृष्ठ संख्या ५६ है। छपाई और कागज सुन्दर है। यह जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में सियाणा निवासी शा. वनेचन्द्र धूपाजी - पूनमचंद के तरफ से छपी है। जोधपुर रियासत के मालानी परगने में बालोतरा स्टेशन के निकटवर्ती नाकोडा - पार्श्वनाथ का प्राचीन तीर्थ है, इसी प्रभावशाली तीर्थ का ऐतिहासिक वृत्तांत इस पुस्तक में दर्ज है। इतिहास सामग्री के लिए यह पुस्तक उपयोगी है।
५. सत्यबोध भास्कर - आकार डेमी १२ पेजी, पृष्ठ संख्या १६२, मूल्य १ रुपए ५० पैसे। टाइप, छपाई और कागज सुन्दर है। यह जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में संवत् १९७१ में बागरा (मारवाड़) के निवासी शा. जवानमल नथमल राजाजी पोरवाड़ के तरफ से छपी है। इस पुस्तक का दूसरा नाम प्रतिमासंसिद्धि है। स्थानकवासी सम्प्रदाय के लोग मूर्ति पूजा और मूर्ति प्रतिष्ठा के विरुद्ध नाना प्रकार के टेढ़े मोटे प्रश्न करते हैं। उन्हीं प्रश्नों के युक्ति सङ्गत उत्तर इस पुस्तक में हैं। उत्तरों में जिनेन्द्रों की प्रतिमा-प्रतिष्ठा की आवश्यकता