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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् २११ वर्तमान समय में सद्गुणी पुरुष कम हैं, इसलिए पूर्वोक्त सभी गुण मिलना यह स्वाभाविक है, परन्तु जिसमें अल्पगुण भी देख पड़े उसका भी बहुमान करना चाहिए। यही उपदेश ग्रन्थकार देते हैं - संपइ दूसमसमए, दीसइ थोवो विजस्स धम्मगुणो। बहुमाणो कायव्वो, तस्स सया धम्मबुद्धीए ॥२५॥ संप्रति दुःषमसमये, दृश्यते स्तोकोऽपि यस्य धर्मगुणः। बहुमानः कर्त्तव्य-स्तस्य सदा.धर्मबुद्धया ॥२५॥ शब्दार्थ -(संपइ) इस (दूसमसमए) पंचमकाल में (थोवो) थोड़ा (वि) भी (जस्स) जिस पुरुष का (धम्मगुणो) धार्मिक गुण (दीसइ) देख पड़ता है (तस्स) उसका (बहुमाणो) बहुमान आदर (सया) निरन्तर (धम्मबुद्धीए) धर्मबुद्धि से (कायव्वो) करना चाहिए। भावार्थ - वर्तमान समय में जिस मनुष्य में थोड़े भी धार्मिक गुण देख पड़ें, तो उनकी भी धार्मिक बुद्धि से निरन्तर बहुमान पूर्वक प्रशंसा करनी चाहिए।. . विवेचन - तीर्थंकर और गणधर सदृश स्वावलम्बी, कालिकाचार्य जैसे सत्यप्रिय, स्थूलभद्र, जम्बूस्वामी और विजयकुँवर जैसे ब्रह्मचारी, सिद्धसेन, वादिदेव, यशोविजय और आनन्दघन जैसे अध्यात्मतार्किक शिरोमणि, हेमचन्द्र आदि के सदृश संस्कृतसाहित्य प्रेमी, और धन्ना, शालिभद्र, गजसुकुमाल आदि महिमाशाली महर्षियों के सदृश तपस्वी सहनशील आदि सदगुणों से सुशोभित प्रायः वर्तमान में कोई नहीं दिख पड़ता, तथापि इस समय में भी आदर्श पुरुषों का सर्वथा लोप नहीं है, आज कल भी अनेक सदगुणी
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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