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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् ९७ स्त्रियों को सद्गुणी बनने के लिये इस प्रकार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिये कि सबके साथ मधुरता से बोलना, नित्य प्रसन्न मुख रहना, किसी की निन्दा या मर्मोद्घाटन न करना, घर की इज्जत बढ़ाने में कटिबद्ध रहना, एकांत में पर-पुरुषों से या कुटिल और निन्दाखोर स्त्रियों से बात न करना, सबका हर एक काम धीरप और यतना से करना, सब के साथ प्रेम और मेल-मिलाप से रहना, घर धंधे से बचे हुए टाइम में धर्मग्रन्थों का अभ्यास करना और फिजूल बातों में अपना अमूल्य समय बरबाद न करना, सुशील और सदाचारी बनना । जिससे कषायाग्नि शांत हो, वह मार्ग धारण करना चाहिएतं नियमा मुत्तव्वं, जत्तो उप्ज्जए कसायऽग्गी । तं वत्युं धारिज्जा, जेणोवसमो कसायाणं ॥ ११ ॥ “ तद् नियमेन मोक्तव्यं, यस्मादुत्पद्यते कषायाग्निः । तु वस्तु धारयेद्, येनोपशमः कषायाणाम् ॥११॥” शब्दार्थ - ( जत्तो) जिस कार्य से (कसाऽग्गी) कषायरूप अग्नि (उप्पज्जए) उत्पन्न होती हो (तं) उस कार्य को (नियमा) निश्चय से (मुत्तव्वं) छोड़ना चाहिए और (जेण) जिस कार्य से (कसायाणं) कषायों का (उवसमो) उपशम हो (तं) उस (वत्युं ) वस्तु को कार्य को (धारिज्जा) धारण करना चाहिए। भावार्थ उस कार्य को अवश्य छोड़ देना चाहिए जिससे कि कषायरूप अग्नि प्रदीप्त होती हो और उस कार्य को अवश्य आचरण करना चाहिए जिससे कि कषायों का उपशम हो । विवेचन - जिसके निमित्त से अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन और अनन्त चारित्र आदि उत्तम गुणों का विनाश हो जावे तथा चौराशी -
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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