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________________ ८३ श्री गुणानुरागकुलकम् निन्दा करने वाला पृष्ठ मांसखादक है, वह निरन्तर दूसरों के निन्दारूप 'मैल (विष्ठा) को साफ किया करता है। निन्दा करने वालों को परापवाद बोलने में बहुत आनन्द होता है, परन्तु वह आनन्द उनका भवान्तर में अत्यंत दुःखदायक होता है। संसार में और पापों की अपेक्षा निन्दा करना महापाप है, इसी विषय की पुष्टि के लिए 'श्रीसमयसुन्दरसूरिजी' लिखते हैं कि - निन्दा म करजो कोइनी पारकी रे, निन्दाना बोल्यां महापाप रे। बैर-विरोध बाँधे घणो रे, निन्दा करतो न गणे माय बाप रे॥ ॥ निन्दा. ॥१॥ दूर बलन्ती कां देखो तुम्हे रे ?, पगमां बलती देखो सह कोय रे। परना मेलमां धोया लूगड़ा रे, कहो केम ऊजला होय रे ?॥ ॥ निन्दा. ॥२॥ आप संभालो सहु को आपणी रे, निन्दानी मूको पड़ी टेव रे। थोड़े घणे अवगुणें सह भरया रे, केहना नलिया चूवे, केहना नेव रे॥ ॥ निन्दा. ॥३॥ निन्दा कर ते थाये नारकी रे, तप जप कीधुं सहु जाय रे।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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