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________________ ७३ श्री गुणानुरागकुलकम् शास्त्रोक्त गुण सम्पन्न महात्मा इस संसार में विरले हैं, उनका समागम होना सहज नहीं है, जिन लोगों ने अखंडित दान, दया, संजम आदि सत्यव्रत पालन किये हैं और परापवाद से अपने आत्मा को बचाकर सहनशीलता आदि सद्गुणों का अभ्यास किया है या करने का उत्साह जिनके हृदय में रहता है, उन्हीं को संत समागम मिलता है। ___अशुभ व्यापारों से रहित मन, वचन और काया इन त्रिकरण योग को जिसने स्थिर कर लिया है। ऐसे योगीश्वर गाँव, नगर, अरण्य, दिवस, रात्रि, सोते या जागते सर्वत्र समभाव में रमण करते रहते हैं। कहा भी है कि - 'आत्मदर्शी कुंवसति, केवल आत्मशुद्धि' जो केवल आत्मनिष्ठ हुए हैं, जो निज स्वरूप में ही रमण करते हैं, ऐसे महात्माओं का निवास शुद्ध आत्मप्रदेश ही है, अर्थात् उन्हें आत्मरमणता सिवाय निन्दा, ईर्षा, कषाय आदि अशुभ स्थानों में निवास करने की आवश्यकता नहीं है। शास्त्रकारों ने महात्माओं के लक्षण इस प्रकार लिखे हैं कि - सत्पुरुषों के लक्षण - उदारस्तत्त्ववित्सत्त्व-सम्पन्नः सुकृताऽऽशयः । सर्वसत्त्वहितः सत्य-शाली विशदसद्गुणः ॥१॥ विश्वोपकारा सम्पूर्ण - चन्द्रनिस्तन्द्रवृत्तभूः । विनीतात्मा विवेकी यः, स 'महापुरुषः स्मृतः ॥२॥ - भावार्थ - उदार जिनके हृदय में नीच लोगों की तरह 'यह मेरा यह तेस' इत्यादि तुच्छ बुद्धि उत्पन्न नहीं हो और सारी दुनिया जिनके कुटुम्ब रूप हो १, तत्त्ववित्स्वबुद्धि बल से साराऽसार, सत्याऽसत्य, हिताऽहित,
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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