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________________ ७० .. श्री गुणानुरागकुलकम् ऐसा हार्दिक विचार कर ब्राह्मण उस हवेली के भीतर जाने लगा कि चौकीदार ने उसे रोका, और कहा कि - 'अरे! कहाँ जाता है?, 'ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं सेठजी से कुछ पूछने के लिए जाता हूँ', चौकीदार ने कहा 'यहाँ ठहर, मैं सेठ साहब को इत्तला (सूचना) देता हूं' ब्राह्मण दरवाजे पर खड़ा रहा और चौकीदार ने भीतर जाकर सेठजी से कहा कि - "हजूर! एक ब्राह्मण आपसे मिलने आया है, यदि आज्ञा हो तो उसको आने दूं" सेठ ने जवाब दिया 'अभी अवकाश नहीं है।' चौकीदार ने वापस जाकर ब्राह्मण से वैसा ही कहा, तब वह बाहर की एक चबूतरे पर बैठ गया। इधर सेठ किसी कार्य के निमित्त गाड़ी में बैठकर बाहर निकला, इस समय ब्राह्मण आशीर्वाद देकर कुछ पूछने का इरादा करता है, इतने में तो सिपाही लोगों ने उसे बन्द कर दिया, सेठ की गाड़ी रवाना हो गई। कार्य होने के बाद सेठ पीछा लौटकर आया कि - फिर वह ब्राह्मण खड़ा होकर पूछने लगा कि सेठ ने इसकी बात को न सुनकर मुनीम से कहा, 'इसको सीधा पेटिया दिलवा दो।' हुक्म पाते ही मुनीम ने ब्राह्मण से पूछा कि तेरे को क्या चाहिए? ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं तो सेठजी से केवल मिलना ही चाहता हूँ और कुछ नहीं। मुनीम ने सेठ के पास जाकर उसी प्रकार कहा, सेठ ने सोचा कि वह मेरे पास आने पर कुछ अधिक मांगेगा, और मुझे मिलने का अवकाश भी नहीं है। मुनीम को हुक्म दिया कि, 'उसको दो चार रुपया देकर रवाना कर दो।' सेठ की आज्ञा पाकर मुनीम ने ब्राह्मण से वैसा ही कहा, किन्तु उसने तो वही पूर्वोक्त वचन कहा। तब मुनीम बोला - ब्राह्मण! तुम भूखे मर जाओगे तो भी सेठ तो आपसे मिलने वाला नहीं है।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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