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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् संसर्गाधीन है। इसीलिए यहाँ पर अवसर प्राप्त कुछ सत्संग की महिमा दिखा दी जाती है। सत = गुणवानों का, सङ्ग = परिचय (सहवास) करने का नाम 'सत्सङ' है। अच्छा मनुष्य उत्तम ग्रन्थ, सुन्दर भाषण, सुयोग्य मंडली, सुशिक्षित सभासद, उत्तम पाठशाला, सद्विचार और गुण सम्पन्न चरित्र, इन सब को स् पद से लक्षित (प्रकट) किया जा सकता है। उनका सङ्ग याने सोहबत, परिचय, प्रसङ्ग, अभ्यास, मनन, अवलोकन, निवास आदि अनेक प्रकार के सम्बन्ध सत्सङ्ग कहाते हैं। अर्थात् - अनेक तरह से सत्सङ्ग का सेवन किया जा सकता है। __ शास्त्रकारों ने जो आर्यक्षेत्र, उत्तम कुल और उत्तम जाति में जन्म लेना अच्छा बताया है। इसका कारण यही है कि उत्तम क्षेत्रादि में जन्म होने से आर्यजनों का समागम हमेशा मिलता रहता है, जिससे मनुष्यों का चित्त बाल्यावस्था से ही सगुणों के तरफ आकर्षित (खिचा हुआ) बना रहता है और निरन्तर स्गुणों को प्राप्त करने का उत्साह बढ़ा करता है। इसलिए सत्संग की महिमा अवर्णनीय है। संसार में अनेक दुःखों से पीड़ित जीवमात्र के लिए सत्सङ्ग विश्राम स्थान है। इतना ही नहीं किन्तु प्रत्येक वस्तुगत सुख और दुःख का प्रत्यक्ष अनुभव कराकर महोत्तम पदाधिकारी बना देने वाला है। यहाँ पर एक ब्राह्मण का दृष्टान्त अत्यन्त मनन करने लायक होने से लिखा जाता है - सत्समागम पर दृष्टान्त - | किसी सुयोग्य ब्राह्मण की अत्युत्तम भक्ति से सन्तुष्ट हो एक महात्मा बोले कि - हे विप्र ! तू क्या चाहता है?
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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