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श्री गुणानुरागकुलकम्
५७ विनयवान् मनुष्य बहुत शीघ्र उत्तरोत्तर सद्गुणों को प्राप्त करता है। देखिये विनय के द्वारा तपस्वियों को पुण्य प्राप्ति होती है, सुखाभिलाषी पुरुषों के लिए सम्पदा अनुकूल होती है और योगी लोगों के लिए भी मुक्ति का परिणाम प्राप्त होता है, फिर कहिये विनय - पूज्य पुरुषों को या किसी भी पुरुष को प्रिय क्यों न हो ? विनीत शिष्यों को ही गुरु महाराज शास्त्रों और परम्परागत समाचारियों के भेद (रहस्य) बतलाते हैं। विनीत पुत्रों को ही माँ-बाप शुभाशीर्वाद देकर कृतार्थ करते हैं। इसीसे कहा जाता है कि - विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र और चारित्र से मोक्ष (सदा शाश्वत सुख) प्राप्त होता है। जहाँ विनय का अभाव है, वहाँ धार्मिक तत्त्वों की प्राप्ति नहीं हो सकती और न कोई सद्गुण ही मिल सकता है। अतएव विनयवान् पुरुष ही धर्म के योग्य होता है।
१९. कृतज्ञता - उपकारी पुरुषों के उपकारों को नहीं भूलना कृतज्ञता कहलाती है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिये कि - निरंतर कृतज्ञ गुण को धारण करें, किन्तु कृतघ्न नहीं बनें। जो लोग कृतज्ञ होते हैं, उनकी प्रशंसा होती है और सब कोई उनके सहायक बनते हैं। संसार में माता-पिता, कलाचार्य (विद्यागुरु) और धर्माचार्य आदि परमोपकारी कहे जाते हैं।
. माता-पिता अनेक कष्ट उठाकर बचपन में पालन-पोषण करते हैं और सुख-दुःख में सहायक बनते हैं।
___ कलाचार्य - पढ़ना, लिखना, व्याख्यान देना, वाद विषयक ग्रंथों की युक्ति बताना, सांसारिक व्यवहार सिखाना इत्यादि शिक्षाओं को देकर उत्तमता की सीढ़ी पर चढ़ाते हैं।