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________________ गुणनियता गृहस्थ गृहीतं यदि गृहीत एव गृहीतस्यापि गोपिण्डेन तदै गोपिण्डेन सहै ग्रन्थरचना ग्रहणं स्मरण ग्राहकाकार ग्राह्यग्राहक ग्राह्यस्यैक्यं घट दीपेन डयाप्रातिपदि चकास्त्यपुन चतुर्थ: पुरु चयापचययुक्तं चयापचय सं चर्मोपमश्चेत् चिकित्सा दि चितिनमार्थ चित्रप्रस्थामयं चिरज्वर शिरो 65 चिरन्तनमति: 447 499 515 42 11 36 199 526 495 270 294 499 245 18 462 441 288 50 298 373 438 49 433 चेतनानां वहुत्वं चैतन्यखचितात् चोचुव छेद्यस्यैकान्त जगतो यच्च जनयन्तीं च जन्मे जन्मे जन्मैव किं न जन्मात जरया हवा जरावियोग जाग्रत: स्वप्न जाग्रदशायां जातिशब्दाः जातिव्यक्त्योः जातेऽस्मिन्विषया जातेः कार्यान्वयः जात्यादीनां जात्याद्यर्थ जात्योपक्रम जायते जन्तु जायमानैव जाल ज्वल गळ जीवन् वा स्वर्ग ज्ञातं सम्यग 337 344 267 38 458, 451. 356 7. 58. 237 519 444 447 419. 438 438 639 50 189 58 36 69 650 357 38 506 128 264
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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