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________________ 12 280 नायं समासः किन्तु नावश्यं श्रोत्रमाकाशं नासिद्ध भावधर्मोऽस्ति नित्यत्वं तु स्याद्दर्शन निरस्तश्चायं शब्द निर्विकल्पकबोधेऽपि निर्विशेषं न सामान्य नूनं तत्रापि पूर्वेण नूनं स चक्षुषा सर्वान् नैकदेशत्रास नैयायिकास्तु धूम नैष वस्त्वन्तराभाव नैषा तर्केण मतिः न्यायोद्गारगभीर 24 342 405 प 234 | पुरूपयो मा प्रपत: 582 531 पुत्रकामः पुष्टया 60,651 336 पुत्रैर्दारैश्च भृत्यैश्च 661 524 पूर्ववाक्यार्थविज्ञानात् 531 | पूर्णाहुया सर्वान् 663, 676 252 पूर्वापरपरामर्श ... 250 165 पार्णमास्यां बजेत 371 प्रख्याभावाच योगस्य 540 269 प्रजापतिः प्रजाः प्रमापतिना चत्वारः 575 प्रजापतिर कामयत 614 143 | प्रजापतिरात्मनो ६07,671,675 316 प्रजापति: सोमेन 021 प्रणिधानंलिङ्गादि 60 प्रतिनिधिरपि चैवं 303 प्रत्यक्ष योगिनामिष्टं 265 483 | प्रदीपः सर्वविद्यानां 28 326 | प्रधानविधिवर्जितं 106 618 प्रपातस्तु तटो भृगुः । 215 670 प्रमाणतैव न ह्यस्य 122 22 प्रमाणतोऽर्थप्रतिपत्ती 150 236प्रमाणत्वोपचारस्तु 184 प्रमाणमविसंवादि 61,403 662 प्रमाणषटकविज्ञात: 94. 600 प्रमाणादीनां तत्त्वस्य 548 | प्रमाता प्रमाण 626 | प्रयत्नेनान्विच्छन्त: 418 101 | प्रयाजशेषेण - 125 6,619 | प्रवृत्तर्वा निवृत्तिर्वा 691 6, 615/ प्रवृत्तिसामर्थ्यादर्थ 446 12 | प्रसिद्धसाधात् साध्य 873, 381 668 पक्ष्मलाक्षीमभिरमयेत् पतिं विश्वस्थ पय आहुतयो ह पयसा जुहोति परश्शतपरिक्षोदात् परिव्राटकामुकशुनां पशुबन्धयाजी सर्वान् पावमानी जपेत् पिक इति कोकिल: पिण्डव्यङ्गयैव गोत्यादि पितश्च मधुसर्पिभ्यां पीनो दिवा न भुते च पुराणं धर्मशास्त्रं च पुराणतर्कमीमांसा पुरुष: पुनश्चतुर्धा 21 :
SR No.002265
Book TitleNyayamanjari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1969
Total Pages810
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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