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स्तोत्र-रास-संहिता.
सरे इरत परत विमास, पालित सूरितणी परे विद्या सिद्ध
आकास ||१०|| चोर धाड संकट टले राजा वसि होवे। तित्थंकर सो होइ लाख गुण विधिसुं जोवे । साइण डाइण भूत प्रेत वेताल न पुहवे, आधि व्याधि ग्रहतणी पीडते किमहि न होवे । कुट्ठ जलोदर रोग सवे नासै एणही मंत, मयणासुन्दरितणी परे नवपय झाण करंत ।।११।। एक जीह इण मंत्र तणा गुण किता बखाणं, नाणहीण छउ मत्थ एह गुण पार न जाणूं। जिम सत्तुंजय तित्थराउ महिमा उदयवंतो, सयल मंत्र धुरि एह मंत्र राजा जयवंतो । तित्थंकर गणहर पणिय चवदह पूरव सार, इण गुण अंत न को लहे गुण गिरुवो नवकार ||१२|| अड संपय नवपय सहित इगसठ लहु अक्खर, गुरु अक्खर सत्तैव इह जाणो परमक्खर । गुरु जिण वल्लह ( जिणप्पह.) सूरि भणे सिव सुक्खह कारण, नरय तिरय गइ रोग सोग बहु-दुक्ख निवारण । जल थल महियल वनगहण समरणं हुवै इक चित्त, पंच परमेष्ठि मंत्रह तणी सेवा देज्यो नित्त||१३||
जयतिहुअण-स्तोत्र जय तिहुअण-वरकप्परुक्ख ! जय जिण धण्णंतरि ! जय तिहुअण-कल्लाण-कोस ! दुरअक्करि-केसरि । तिहुअण जण-अविलंघियाण ! भुवणत्तय-सामिअ, ! कुणसुसुहाई जिणेस पास थंभणय-पुरहिअ ||१|| तइ समरंत लहंति