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________________ वृद्धनवकार २१ उवझाय सीस पाढंता पच्छिम, आराहिज्जे अंग पुव्व धारंत मणोरम । पच्छिम दिस पंखडीय कमल ऊपर सुहझाण, जोवो परमानंद तासु गयं देवविमाण। गुरु लघु जे रक्खे विदुर तिहां नर बहु फल होइ, मन सूधे विण जे जपे तिहां फल सिद्ध न जोइ ॥६|| सव्व साधु उत्तर विभाग सामला बइठा, जिण धर्म लोय पयासयंत चारित्र गुण जिठा। मण वयण काएहिं जपे जे एके झाणे, पंचवन्न तिहां नाण झाण गुण एह पमाणे। अनन्त चौवीसी जग हुए होसी अवर अनंत, आदि कोइ जाणे नहीं इण नवकारह मंत ||७|| एसो पंच णमुक्कारो पद दिसिअ गणेहिं, सव्व पावप्पणासणो पद जपे-नरेहिं । वायव दिसि झाएह मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ईसाण पएसिं । चिहुं दिसि चिहुं विदिसे मिलिय अठ दल कमल ठवेइ, जो गुरु लघु जाणी जपै सो घण पाव खवेइ |८|| इण प्रभाव धरणिंद हुओ पायालह सामी, समलीकुमर उपन्न भिल्ल सुर-लोयह गामी । संबल कंबल बे बलद पहुता देवा कप्पे, सूली दीधो चोर देव थयो नवकारहिं जप्पे । शिवकुमार मन वंछिय करे जोगी लियो मसाण, सोनापुरसो सीधलो इण नवकार प्रमाण ||९|| छींके बैठो चोर एक आकासे गामी, अहि फिट्टि हुइ फूलमाल नवकारह नामी । वाछरूआ चारंत बाल जल नदी प्रवाहे, बींध्यों कंटही उयर मंत्र जपियो मनमांहे। चित्या काज सवे
SR No.002264
Book TitleStotra Ras Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
PublisherSiddhiraj Jain
Publication Year1986
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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