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स्तोत्र-रास-संहिता
लंघउ, रयणरासि कारण किसे सायर उल्लंघउ । चवदे पूरव सार, युग लद्धउ ए नवकार, सयल काज महियल सरे दुत्तर तरे संसार ||१|| केवलि भासिय रीत जिके नवकार आराहे,भोगवि सुक्ख अणंत अंत परमप्पय साहे। इण झाणे सुर रिद्धि पुत्त सुह विलसे बहु परि, इण झाणे सुरलोक इंद-पद पामे सुन्दरि । एह मंत्र सासतो जपे अचिंत चिंतामणि एह, समरण पाप सवे टले रिद्धि सिद्धि । नियगेह ||२|| निय सिर ऊपर झाण मज्झ चिंतवे कमल . नर, कंचणमय अठदल सहित तिहां मांहे कनकवर । तिहां बैठा अरिहंतदेव पउमासण फिटकमणिं, सेय वत्थ पहरेवि पढम पय चिते नियमणि । निव्वारय चउ गइ गमण पामिय सासय मुक्ख, अरिहंत झाणे तुम लहो जिम अजरामर सुक्ख ||३|| पनर भेय तिहां सिद्ध बीय पद जे आराहे, राते विद्र मतणे वन्ननिय सोहग साहे। राती धोती पहर जपे सिद्धहिं पुव्व दिसि, सयल लोय तिह नरहि होइ ततखिण सेंवसि । मूल-मंत्र वशीकरण अवर सहू जगधंध, मणिमूली ओषध करे बुद्धिहीण जाचंध ||४|| दक्षिण दिसि पंखड़ी जपे नमो आयरिआणं, सोवन-वन्नह सीस सहित उवएसहिनाणं । रिद्धि-सिद्धि कारणे लाम ऊपर जे ध्यावे, पहरे पीलावत्थ तेह मन वंछिय पावे । इण झाणे नव निधि हुवे ए रोग कदे नवि होय, गय रह हय वर पालखी चामर छत्त सिर जोय ||५|| नीलवन्न