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जयतिहुअण-स्तोत्र
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झत्ति वर पुत्त-कलत्तइ, धण्ण सुवण्ण हिरण्ण पुण्ण जणमुंजहि रजहि । पिक्खहि मुक्ख असंखसुक्ख तुह पास पसाइण, इय तिहुअण वरकप्परुक्ख सुक्खहि कुण महजिण ॥२॥ जरजज्जर परिजुण्ण कण्णनट्ठट्ठ सुकुट्टिण, चक्खुक्खोणखएणखुण्ण नर-सल्लिय सूलिण । तुह जिण सरणरसायणेण लहु हुंति पुणण्णव, जय धण्णंतरि पास महवि तुह रोगहरो भव ॥३|| विज्जा-जोइस-मंत-तंत-सिद्धिउ अपयत्तिण, भुवणब्भुअ अट्ठविह सिद्धि सिज्झइ तुह नामिण । तुह नामिण अपवित्तओवि जण होइ पवित्तउ, तं तिहुअण कल्लाणकोस तुह पास निररुत्तउ ||४|| खुद्द पवत्तई मंत-तंत-जंताईविसुत्तइ, चर-थिर-गरल-गहुग्ग-खग्गरिउवग्ग विगंजइ। दुत्थिय-सत्थ-अणत्थ-घत्थ-नित्थारइ दयकरि,दुरिअइ हरउ सपासदेव दुरिअक्करि-केसरि॥शातुह आणाथंभेइ भीम-दप्पुद्ध र-सुरवर, रख्खस-जक्स-फणिंद विंद-चोरानल-जलहर। जल-थलचारि-रउद्द-खुद्द-पसु-जोइणि जोइय, इय तिहुअणअंविलंघिआण जय पास सुसामिअ ||६|| पत्थिअ अत्थ अणत्थ तत्थ भत्तिब्मर-निब्मर, रोमंचंचिअ-चारुकाय किण्णरनरसुरवर । जसुसेवहि कमकमलजुअल पक्खालिअ कलिमलु, सो भुवणत्तयसामि पास महमद्दउ रिउबलु ||७|| जय जोइअ-मण-कमल-मसलभयपंजर कुंजर !, तिहुअणजण-आणंदचंद ! भुवणत्तयदिणयर ! | जय मइमेइणि वारिवाह जयजंतु पिआमह, थंभण