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श्री गौतमस्वामी जी का रास
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कंचण मणि निप्पन्न, दंडकलस ध्वजवड सहिय, पेखवि परमाणन्द, जिणहर मरतेसर महिय । निय निय काय प्रमाण चहुँ दिसि संठिय जिणह बिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥ वयर सामीनो जीव, तिर्यक् जुभक देव तिहां । प्रतिबोध्या पुंडरीक, कंडरिक अध्ययन भणी । वलता गोयम सामि, सवितापस प्रतिबोध करे, लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ॥२८|| खीर खांड घृत आण, अमिय वूठ अंगूठ ठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे | पंच सयां शुम भाव, उज्ज्वल भरियो खीर मिसे । साचा गुरु संयोग, कवल ते केवल रूप हुआ ||२९|| पञ्च सया जिणणाह, समवसरण प्राकारत्रय, पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे । जाणे जणवि पीयूष गाजंती घन मेघ जिम, जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया ||३०|| वस्तु ॥ इण अनुक्रम इण अनुक्रम नाण पन्नरसे, उप्पन्न परिवरिय, हरिदुरिय जिणणाह वंदइ । जाणेवि जगगुरु वयण, तिहि नाण अप्पाण निदइ । चरम जिणेसर इम भणे, गोयम म करिस खेह, छेह जाय आपण सही, होस्यां तुल्ला बेव ||३१|| मास | सामियो ए वीर जिणन्द, पूनमचन्द जिम उल्लसिय, विहरियो ए मरहवासम्मि, वरस बहुत्तर संवसिय । ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संधै सहिय, आवियो ए नयणानंद