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________________ ११६ स्तोत्र-रास-संहिता वीर इग्यार तो, तो उपदेशे भुवन गुरु, संयमशु व्रत बारतो । बिहुं उपवासे पारणो ए, आपणपे विहरंत तोः गोयम संजम जग सयल, जय जयकार करंत तो ॥२१॥ वस्तु ॥ इन्द्रभूइ इन्द्रभूइ चढियो बहुमान, हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंत तोः जे जे संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंत तो। बोधिबीज संजाय मने, गोयम भवहि विरत्त, दिक्खा लेई सिक्खा सही, गणहर पय संपत्त ||२२|| भास || आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो, दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय झरो । समवसरण मझार, जे जे संसय ऊपजे ए, ते ते पर उपगार कारण पूछे मुनि पवरो |२३|| जिहां जिहां दोजें दीख, तिहां तिहां केवल ऊपजेए; आप कनें अणहुंत, गोयम दीजें दान इम । गुरु ऊपर गुरु भक्ति सामी गोयम ऊपनियः इणिछल केवलनाण, रागज राखे रंग मरे ॥२४॥ जो अष्टापद सेल, वंदे चढि चउवीस जिण, आंतम लब्धिवसेण चरम सरीरी सो य मुनि । इय देसणा निसुणेह, गोयम गणहर संचरिय, तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥२५|| तप सोसिय निय अंग-अम्हां सगति न उपजे ए, किम चढसे दृढ़काय, गज जिप दीसै गाजतो ए, गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चितवे ए। तो मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ||२६||
SR No.002264
Book TitleStotra Ras Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
PublisherSiddhiraj Jain
Publication Year1986
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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