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नमो अरिहंताणं
प्रस्तुति प्रत्येक दर्शन का उद्भव किसी एक निमित्त से होता है। भारतीय दर्शन का उद्भव दुःख-निवृत्ति के उपाय की जिज्ञासा से होता है। पाश्चात्य दर्शन का उद्भव संशय से होता है। इसमें भी यूनानी दर्शन का उद्भव आश्चर्य से होता है। ___जैन दर्शन ने आश्चर्य, संशय और कौतूहलादि को दर्शन विकास के निमित्त माने हैं। इसीलिये गौतम स्वामी को "जाए संसए जाये कोउहले"१ .......... जैसे विशेषण लगते हैं। सर्व गणधर "भगवन् ! तत्त्व क्या है?" की जिज्ञासा रूप त्रिपदी से प्रश्न करते हैं। उत्तर में अरिहंत समस्त धर्म-दर्शन की प्रतिपादना करते हैं।
दर्शन का अर्थ है तत्त्व का साक्षात्कार या उपलब्धि। सब से प्रमुख तत्त्व आत्मा है। दर्शन के प्रवेशद्वार पर पहले ही यह प्रश्न होता है-मैं कौन हूँ? कहां से आया हूँ? मेरा पुनर्जन्म होगा या नहीं? यहाँ से फिर मैं कहाँ जाऊँगा?२ प्रवेश हो जाने पर ये प्रश्न जिज्ञासा बन जाते हैं। ____ इन जिज्ञासाओं का समाधान है अरिहंत-दर्शन। “अरिहंत के दर्शन, अरिहंत का दर्शन, अरिहंत से दर्शन" इनके द्वारा आत्म-दर्शन है अरिहंत-दर्शन।
जैन दर्शन में युक्ति और प्रमाण पुरस्सर श्रद्धा को अधिक महत्व दिया गया है। केवल अगम्य और अचिन्त्य तत्व को परमाराध्य मानकर विविध विधियों द्वारा कल्पना मात्र से समर्थन आज के बुद्धिप्रधानवर्ग को संतोष प्रदान नहीं कर सकता। नित्यमुक्त देव, अवतारी देव, लीलाधर देव आदि देवों की, देवदूतों की या देव-पुत्रों की निरर्थक कल्पनाओं से नास्तिक बनते चले जा रहे आज के युग में अरिहंत-दर्शन आत्म-विकास का सन्मार्ग प्रदर्शित कर सकता है। . . अरिहंत परमात्मा सर्जनहार हैं, पर मोक्षोपयोगी धर्मशासन के। पालनहार हैं, पर धर्मगुण के और अभय के द्वारा समस्त जीवराशि के। संहारक हैं, पर पापमार्ग, दुःख
और दुर्गति के। सर्वव्यापी हैं, पर ज्ञान से। मुक्त हैं, पर बद्धमुक्त हैं अर्थात् सकल-जन-प्रत्यक्ष बद्ध अवस्था से मुक्त है। अरिहंत परमात्मा अवतारी, लीलाधारी या इच्छाधारी देव नहीं, पर सकल अवतार, लीला और इच्छाओं से सदा मुक्त हैं।
१. भगवतीसूत्र शतक १, उद्देशक १। २. आचारांगसूत्र श्रुत. १, अ. १, उ. १, सूत्र १ ।
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