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________________ ॥१. अरिहंत का तत्व बोध अरिहंत ___ अरिहंत अर्थात आर्हन्त्य की अभिव्यक्ति। अरिहंत का अभिप्राय है आर्हन्त्य की अनुभूति। अरिहंत का अर्थ है आर्हन्त्य की उपलब्धि। जो सर्व में विद्यमान है उस आर्हन्त्यअर्हता को जो प्रकट कर सकते हैं वे अरिहंत हैं। आर्हन्त्य अरिहंत की अभिव्यक्ति है। आर्हन्त्य प्रकट कर हम सब अरिहंत बन सकते हैं। यह अरिहंत की हमें चुनौती है। अरिहंत बनकर ही अरिहंत को जाना जाता है, पाया जाता है और पूजा जाता है। ___ “अरिहंत बनना ही अरिहंत की पूजा का परिणाम है।" इसका सम्बन्ध किसी व्यक्तिविशेष से बँधा हुआ नहीं है। यह निबंध तत्व है। समस्त अस्तित्व से इसका अनुबंध है। यह स्वयं में पूर्ण है और अन्य अपूर्ण के पूर्ण की अभिव्यक्ति का उद्घाटक है। आर्हन्त्र्य अगम्य है परंतु अरिहंत से अवश्य ही जाना जाता है। अनिर्वचनीय है परंतु परावाणी.के स्रोत में प्रकट भी होता है। अव्यक्त है पर अनुभूति में यह व्यक्त अवश्य होता है। आर्हन्त्य अर्हता है, योग्यता है, क्षमता और समर्थता है। महावीर की वाणी में यह “संधि' है, अवसर है जब इसे खोला जाय, प्रकट किया जाय। : आर्हन्त्य की अनुभूति और अभिव्यक्ति को प्रकट करता है-अरिहंत का तादात्म्य। तादात्म्य अर्थात् अरिहंत के साथ एकरूप बन जाना। .. आचारांग सूत्र में कहा है उनकी दृष्टि उनका स्वरूप-ज्ञान उनका आगमन उनकी चेतसिक अनुभूति और उनका सान्निध्य। इन पाँच प्रकारों से अरिहंत के साथ तादात्म्य होता है। तादात्म्य तत्रूप और तत्स्वरूप बनाकर पूर्ण आर्हन्त्य प्रकट करता है। इसीलिये आनन्दघन जी ने कहा है "जिनस्वरूप थई जिन आराधे ते सही जिनवर होवे रे.... ......... १. आचारांग श्रुतस्कंध १, अध्ययन ५, उद्देशक ४, सूत्र ५४७ ।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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