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अध्याय-७ प्रव्रज्या-कल्याणक
.. १५९-१७६ १. वैराग्य भावना
अनासक्तभाव-प्रव्रज्या की आवश्यकता स्वयंसंबुद्ध अरिहंत लोकान्तिक देवों का आगमन
सांवत्सरिक दान २. प्रव्रज्या महोत्सव
महायोग के महापथ पर अभिषेक विधि निष्कमण ३. प्रव्रज्या विधि
वस्त्राभूषणत्याग-पंचमुष्टिलोच-सिद्धों को नमस्कार - सावद्ययोग के प्रत्याख्यान
निर्मल विपुलमति मनःपर्यवज्ञान का आविर्भाव
कर्मक्षयज एकादश अतिशय ४. साधना
संयमानुष्ठान विधि एवं हेतु-स्वाश्रित साधना अनुत्तरयोग विधि वीरासन, पद्मासन, गोदोहासन आदि विविध आसनों में ध्यान अरिंहत का ध्येय एवं तपश्चर्या .
उपसर्गविजेता अरिहंत .. .. ५. ध्यान का स्वरूप
धर्मध्यान
१७७-२५१
शुक्लध्यान अध्याय-८ केवलज्ञान-कल्याणक . १. केवलज्ञान का स्वरूप
क्षपक श्रेणी मोहनाश केवलज्ञान की उत्पत्ति
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