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केवलज्ञान-कल्याणक २२७ (३३) सत्वरिगृहीतत्व-वाणी का प्रभावोत्पादक एवं ओजस्वी होना। (३४) अपरिखेदित्व-उपदेश देते हुए खेद नहीं होना। (३५) अव्युच्छेदित्व-विषय को सिद्ध किये बिना बीच में नहीं छोड़ना।
इस प्रकार पैंतीस प्रकार की विशेषताओं से अरिहंत भगवान् की वाणी बड़ी प्रभावशाली होती है।
देशना-विवरण
देशना समय
बृहत्कल्प भाष्य में देशना समय का उल्लेख करते हुए कहा है"सूरोदयपच्छिमाए" सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के प्रहर में अर्थात् प्रथम अथवा अंतिम प्रहर में प्रभु देशना देते हैं। हारिभद्रीय वृत्ति में पच्छिमाए का अर्थ पश्चिम अर्थात् अंतिम प्रहर अर्थ किया है। ..
महावीर चरियं में प्रथम पौरुषी और अंतिम पौरुषी का उल्लेख मिलता है परन्तु नित्य दोनों प्रहर में होता है या कभी-कभी, ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। क्योंकि अष्टम प्रस्ताव में प्रथम पौरुषी व्यतीत होते ही देशना का विराम होना और द्वितीय प्रहर में, गणधर देशना तथा तृतीय प्रहर में प्रतिदिन आचरण योग्य समाचारी की प्रतिपालना का होना कहा है। यहां चतुर्थ प्रहर का कोई उल्लेख नहीं है। परन्तु इसके पूर्व श्रावस्ती नगरी के समवसरण में प्रभु की अंतिम प्रहर में देशना देने का खास निरूपण मिलता
.. श्रमण भगवान महावीर के बारे में तो अंतिम देशना के निरूपण में सम्पूर्ण २ दिवस अर्थात् १६ प्रहर तक देशना देने का कहा जाता है। उस अंतिम देशना में विपाकसूत्र और अप्रश्नव्याकरण (उत्तराध्ययन सूत्र) अर्थात् किसी के पूछे बिना, अन्तिम प्रधान नामक अध्ययन कहा। प्रस्तुत अवतरण परंपरागत है। प्रमाण में यह घटना त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र में अवश्य है। परन्तु वहां भगवान के अंतिम छठ तप और देशना-श्रुत के नाम दिये हैं। देशना की कोई निश्चित अवधि यहां नहीं दर्शाई गई है। ... अंतिम समय में इतने घंटे तक देशना का चालू रहना संभव हो भी सकता है। क्योंकि परमात्मा की देशना का उद्देश्य यही होता है कि तीर्थंकर नामकर्म का विपाकोदय होने से जितने भाषा वर्गणा के पुद्गल खिरने होते हैं उतनी देशना होती है। स्वयं देशना की इच्छा संकल्पादि कभी नहीं करते हैं। अतः यह कोई गूढ़ पहेली या
१. पत्र-३३०