________________
२१० स्वरूप-दर्शन ४. पुष्पवृष्टि में कल्पवृक्ष के पुष्प, पारिजात पुष्प, इत्यादि दिव्य पुष्प और
कुन्द-मुकुन्द, कमल, मालती आदि जलज स्थलज पुष्प सदृश होते हैं। ५. व्यंतर-देवता इन्द्रधनुष जैसी पंचवर्णी जानु प्रमाण पुष्पों की वृष्टि करते हैं। ६. सुवासित जल-बिन्दुओं से शुभ एवं मंद पवन से युक्त।
७. देवता एवं असुर हाथों द्वारा पुष्पवृष्टि करते हैं। दिव्य-ध्वनि
यह दिव्य ध्वनि देवताओं द्वारा की जाती है।
सर्वजनों को आह्वाददायक अरिहंत की ध्वनि को प्रातिहार्य क्यों कहा जाता है, ऐसा प्रश्न किया जाता है। इस प्रश्न के उत्तर में प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति में कहा है - कि अरिहंत जब देशना देते हैं तब उनकी दोनों ओर रहे हुए देवताओं द्वारा वेणुवीणा
आदि की ध्वनियों से अरिहंत के शब्द विशेष कर्णप्रिय बनाये जाते हैं। भगवान प्रव्रजित होते हैं उस समय वाद्य बन्द कर दिये जाते हैं, वीणा, वेणु आदि की संगति नहीं होती है। यहाँ जितने अंश में देवों की ध्वनि (वाजिंत्र नाद) है उतने अंश में . प्रातिहार्य जानना।
वीतरागस्तव की टीका में इस बारे में कहा गया कि जब भगवंत देशना देते हैं । तब भगवान के स्वरों को देवगण चारों ओर एक योजन तक विस्तृत करते हैं। प्रसारित ध्वनि देवकृत होने से, उस अपेक्षा से दिव्य-ध्वनि कही जाती है। यह प्रातिहार्य
काललोक प्रकाश में कहा है कि___ मालकोश प्रमुख राग में कही जाती भगवान की देशना ध्वनि. में मिश्र होकर एक योजन तक फैलाई जाती है।
उपमिति में कहा है कि तीन प्राकार के बीच में बिराजमान भगवंत जब देशना देते हैं तब सतत आनन्दमयी ऐसी दिव्य ध्वनि सुनाई देती है। चामर
भुजाओं में अत्यंत मूल्यवान आभूषण पहने हुए दो यक्ष देव अरिहंत परमात्मा के दोनों ओर चामर वींजते हैं। चामरों की संख्या के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। वीतरागस्तव में चामरावली-चामरश्रेणी शब्द का उल्लेख किया गया है। जिससे ऐसा लगता है कि चामर अनेक हो सकते हैं पर संख्या का कोई विशेष क्रम श्वेताम्बर ग्रंथों में उपलब्ध नहीं होता है। दिगम्बर ग्रन्थों में इनकी निश्चित संख्या दर्शाते हुए कहा
चउसट्ठिचामरेहिं मुणालकुंदेन्दुसंखधवलेहिं ।
___ सुरकरपणच्चिदेहिं विज्जिज्जंता जयंतु जिणा ॥ १. तिलोयपण्णत्ति-चतुर्थ महाधिकार गा. ९२७, पृ. २६५