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केवलज्ञान-कल्याणक २०१
दिगम्बर-परम्परा
प्रस्तुत श्वेताम्बरीय बारह पर्षदा के वर्णन से दिगम्बर परम्परा में बहुत कुछ विभिन्नता पाई जाती है। वह यह कि यहां पर बारह कोठों की विभिन्न तैयार की हुई व्यवस्था ही होती है। अतः इनके अनुसार निर्मल स्फटिकमणि से निर्मित दीवालों के बीच में बारह कोठे होते हैं। इन कोठों की ऊंचाई तत्कालीन जिनेन्द्र की ऊंचाई से बारहगुणी होती है। इन बारह कोठों में कौन किस प्रकार बैठते हैं इसका वर्णन करते हुए कहा है. प्रथम कोठे में अक्षीणमहानसिक ऋद्धि तथा सर्पिरानव, क्षीरानव व अमृताम्रवरूप रसऋद्धियों के धारक गणधर देव-प्रमुख साधु बैठा करते हैं।
स्फटिक मणिमय दीवालों से निर्मित दूसरे कोठे में कल्पवासिनी देवियां और तीसरे कोठे में आर्यिकायें (साध्वियां) तथा श्राविकाएँ बैठा करती हैं। ___ चतुर्थ कोठे में संयुक्त ज्योतिषी देवों की देवियां और पांचवें कोठे में व्यन्तर देवों की देवियां बैठा करती हैं। . __छठे कोठे में भवनवासिनी देवियां और सातवें कोठे में दश प्रकार के भवनवासी देव बैठते हैं।
आठवें कोठे में किन्नरादिक आठ प्रकार के व्यन्तर देव और नौवें कोठे में सूर्यादिक ज्योतिषी देव बैठते हैं। - दशवें कोठे में सौधर्म स्वर्ग आदि से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के देव और उनके इन्द्र तथा ग्यारहवें कोठे में चक्रवर्ती, माण्डलिक राजा एवं मनुष्य बैठते हैं।
बारहवें कोठे में हाथी, सिंह, व्याघ्र और हरिणादिक तिर्यंच जीव बैठते हैं। इनमें पूर्व वैर को छोड़कर शत्रु भी उत्तम मित्रभाव से युक्त होते हैं। भगवत् प्रभाव से सभी का समावेश
समवसरण बारह कोस प्रमाण ही होने पर भी कितने ही जिज्ञासु श्रोता आवें उसमें सभी समा जाते हैं। करोड़ों योजा के विस्तार का आकाश प्रदेश जिस प्रकार अवकाश देता है, उसी प्रकार समागत भव्य भगवत्-प्रभाव से समवसरण में समा जाते हैं। जिस प्रकार हजारों नदियां आकर मिलें और पानी कितना ही बरसे तो भी- समुद्र उस पानी को अपने में समा लेता है व अपनी मर्यादा से बाहर नहीं जाता है, उसी प्रकार समवसरण आये हुए समस्त भव्यों को स्थान देता है।
एक-एक समवसरण में पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण विविध प्रकार के जीव जिनदेव की वन्दना में प्रवृत्त होते हुए स्थिर रहते हैं। कोठे के क्षेत्र से यद्यपि जीवों का क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है, तथापि वे सर्व जीव जिनदेव के माहात्म्य से एक दूसरे से अस्पृष्ट रहते हैं। जिन भगवान् के माहात्म्य से बालक प्रभृति जीव प्रवेश करने अथवा