________________
अध्याय ८
केवलज्ञान-कल्याणक
केवलज्ञान
१. केवलज्ञान की उत्पत्ति एवं स्वरूप २. अरिहंत और सामान्य केवली में अन्तर ३. कैवल्य महिमा ४. समवसरण ५. अष्टादशदोषरहितता ६. बारह मुण ७. प्रातिहार्य ६. अतिशय ९. चार मूलातिचार १०. चौंतीस (३४) अतिशय-विभाजन ..
११. वचनातिशय देशना-विवरण... १. देशना की आवश्यकता एवं परिणाम त्रिपदी
१. दार्शनिक परम्परा में त्रिपदी का गौरव एवं महत्व २. विश्व व्यवस्था ३. संघ व्यवस्था