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________________ ८० सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम षट्खंडागमादि ग्रंथों में कारण के प्रकार १६ होने पर भी पंउमचरियरे में श्वेताम्बर की तरह २0 कारण माने हैं। वहाँ पर २० कारणों के नाम नहीं गिनाये हैं। परन्तु यह स्पष्ट है कि दोनों परम्पराओं में यह संख्या संबंधी विभिन्नता रही है। तत्वार्थ सूत्र में भी १६ कारण माने हैं। षट्खंडागम से तत्वार्थ सूत्र के मूल में और टीका में कुछ विभिन्नता पाई जाती है जो इस प्रकार है श्वेताम्बर परम्परा दिगम्बर परम्परा तत्वार्थ सूत्र टीका १. अरिहंत-वात्सल्य अरहंत-भक्ति अर्हत्-भक्ति २. सिद्ध-वात्सल्य सिद्ध पूजा ३. प्रवचन-वात्सल्य प्रवचन-वत्सलता प्रवचन-भक्ति ४. गुरु-वात्सल्य आचार्य-भक्ति । ५. स्थविर-वात्सल्य ६. बहुश्रुत-वात्सल्य बहुश्रुत-भक्ति बहुश्रुत-भक्ति ७. तपस्वी-वात्सल्य ८. अभीक्ष्ण (सतत) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अभीक्ष्ण . . ज्ञानोपयोग। युक्तता। ज्ञानोपयोग। ९. दर्शन . दर्शन-विशुद्धता दर्शन-विशुद्धि १०. विनय विनय सम्पन्नता विनय सम्पन्नता ११. आवश्यक छह आवश्यकों में अपरिहारिण अपरिहीनता । आवश्यक १२. निरतिचार शीलव्रत शीलव्रत में अनतिचार निरतिचारता। १३. क्षणलव क्षणलव प्रतिबोधनता अभीक्ष्ण संवेग .. क्षणलव १४. तप यथाशक्ति तप यथाशक्ति तप १५. त्याग साधुओं की प्रासुक यथाशक्ति परित्यागता त्याग १६. वैयावृत्य साधुओं की वैयावृत्य वैयावृत्य योगयुक्तता। शीलव्रत । १. छक्खंडागमो-तृतीयखंड-बंधस्वामित्वविचय, सूत्र ४०, पृ. ७८. २. उद्देशक-२ गा. ८२वीं
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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