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अध्याय ४
आराधक से आराध्य
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१. आत्मविकास की प्रथम भूमिका २. सम्यक्त्व प्राप्ति के पूर्व ३. सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात्
४. भावी अरिहंत की भावना . ५. तीर्थंकरत्व और तीर्थंकर नामकर्म
६. आराधक से आराध्य ७. .अरिहंत पद-प्राप्ति के उपाय ८. श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा की विभिन्न मान्यताएँ ९. अरिहंत बनने के २० उपाय